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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
શ્રાવણ आ० कौण्डकुन्द दिगम्बर समाज के आदिम पुरुष हैं अतः दिगम्बर ग्रन्थकारों को आपके जीवन पर कुछ प्रकाश डालना आवश्यक. था, मगर खेद की बात है कि-दिगम्बर साहित्य इस सम्बन्ध में मूक-सा ही है। दिगम्बर ग्रन्थकारों ने अपनी गुरु-परम्परा में उन बडे बडे आचार्यों के नाम लिख दिये हैं जिन की बहुतसी जीवन घटनायें श्वे० पक्ष में उपलब्ध हैं । किन्तु उनके माता, पिता, गच्छ, गुरु, शिष्य और संवत् का विश्वस्त परिचय नहीं दिया । मुमकिन है कि उनके जीवन-परिचय को अधिक स्पष्टता करने में उन्हें श्वेताम्बर पक्ष अधिक पुष्ट होजाने का डर हो । कुन्दकुन्दाचार्य का विशद-चरित्र अनुपलब्ध होनेका भी यही कारण है।
किंग एडवर्ड कॉलेज-अमरावती (C. P.) के संस्कृत के प्रोफेसर होरालालजी (दि०) जैन भी यही शिकायत करते हैं कि:-"दुर्भाग्यतः किसी भी लेख में उपर्युक्त श्रुतज्ञानियों
और कुन्दकुन्दाचार्य के बीच की पूरी गुरु-परंपरा नहीं पाई जाती । (पृष्ट-१२७) . “इन्द्रनन्दीकृत श्रुतावतार के अनुसार कुन्दकुन्द उन आचार्यों में हुवे हैं जिन्होंने अंगज्ञान लोप होने के पश्चात् आगम को पुस्तकारूढ किया। (पृष्ट---१२८) ।
कुन्दकुन्दाचार्य जैन इतिहास में—विशेषतः दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के इतिहास में महत्त्वपूर्ण पुरुष हुए हैं । वे प्राचीन और नवीन संप्रदाय के बीच की एक कडी हैं । उनसे पहले जो भद्रबाहु आदि श्रुतज्ञानी हो गये हैं उनके नाम मात्र के सिवाय उनके कोई ग्रन्थ आदि हमें अबतक प्राप्त नहीं हुए हैं। कुन्दकुन्दाचार्य के कुछ प्रथम ही जिन पुष्पदंत भूतबली आदि आचार्योंने आगों को पुस्तकारूढ किया उनके भी ग्रन्थों का अब कुछ पता नहीं चलता।" (पृष्ट-१२९)
-जैन-शिलालेख-संग्रह-भूमिका, आचार्यों की वंशावली-पृष्ठ १२७ से १२९ । मुमकिन है कि-इस गुरु-परंपरा का संबन्ध कुछ आजीविक मत, जिसका इतिहास हम प्रारम्भ में बता चुके हैं उससे हों, अतः इन ज्ञानियों के जीवन-सम्बन्ध यथार्थ न लिखे गये हो । कुछ भी हों, किन्तु इतना तो कहना होगा कि दिगम्बर प्रन्थकारेने अपने आचार्यों के जीवनचरित्र-बनाने में सर्वथा लापरवाई से काम लिया है।
दिगम्बर ग्रन्थों में संदिग्ध या असंदिग्ध जो कुछ कुन्दकुन्दाचार्य का चरित्र उपलब्ध है सो निम्न प्रकार है... (१) कुन्दकुन्दाचार्य के भिन्न भिन्न नामः--
१-कौण्डकौडिन्य—यह नाम जन्मभूमि से सम्बन्ध रखता है। कोण्ड+कौडिन्य । कौण्डकुन्द, कुन्दकुन्द ये इसीके संस्कारित रूपांतर हैं। .
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