________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४०४
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
અષાડ
पण आहार सम्भवी शके छे, बे वखत सोल पाठनो विरोध बतावनारनी बुद्धि अने सोल कवल खाय तो बे वखत पण सम्भवी अभिज्ञतानो विरोध प्रदर्शित थाय छे। शके छे, अने एक वखते बत्रीश खाय तो वली लेखके कल्पसूत्रना भाषान्तरने एक वखत पण आहार सम्भवी शके छे। आश्रीने अनेक प्रकारना कुतर्को उठाव्या छे, माटे आ वाक्य एक वखत खावाना प्रमाणमां तेना उपर विचार करतां पहेलां कल्पसूत्रनो आपq ते बीलकुल उचित नथी।
ते स्थलनो पाठ अने तेनो अर्थ विचारीये जेथी ___कदाच एम कहो के नीचेनी अडधी ते वस्तु सहेलाईथी समजी शकाशेः-- गाथामांथी ते अर्थ निकलतो हशे तो ते पग "वासावासं पजोसवियम्स निच्चभत्तियस्स खोटुं छे । पाछलनी अडधी गाथानो अर्थ आ भिक्खुस्स कप्पई एगं गोअरकालं गाहावइकुलं प्रमाणे छे-" राग वडे करीने आहार करता भत्ताए वा पागाए वा निक्खमित्तए वा मुनि पोताना चारित्रने अंगारदोषवाळू पविसित्तए वा गन्नथ आयरियवेयावच्चेण वा करे छे।"
उवझायवेयावच्चेग वा तवम्सिवेयावञ्चेण वा आ बत्रीश कवल प्रमाण जे आहार गिलाणवेयावच्चेण वा खुड्डएण वा खुड्डिआए बताववामां आवेल छे ते पण अधिक आहार वा अवंजणजायएण वा ॥ २० ॥ वासावासं पाचन नहि थवाथी झाडा. वमन वगेरेनी व्याधी पजोसवियम्स चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स अयं अने मृत्यु वगेरेने शरणे न थवं पड़े तेने माटे एवइए बिसेसे, जं से पाओ निक्रवम्म पुवामेव छे, जेने माटे आ प्रमाणे कहेल छे:-- वियडगं भुचा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय अइबहुयं अइबहुसो अइप्पमाणेण भोयणं भुत्तं । संपमज्जिय से य संथरिजा कप्पई तदिवस हादेज व वामेज व मारेज्ज व तं अजीरंतं
तेणेव भत्तद्वेणं पज्जोसवित्तए, से य नो
॥१॥ संथरिजा एवं से कप्पइ दुचं प गाहावइकुलं [ अतिबहुकमतिबहुशोऽतिप्रमाणेन भोजनं भत्ताए वा पाणाए वा निक्वमित्ता वा पवि
भुक्तत् । सित्तए वा ॥ २१॥ वासावासं पजोसवियस्स हादयेद्वा वामयेद्वा मारयेद्वा तदजीर्यमाणम् छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स क पंति दो गोअर
॥१॥ काला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा ___ माटे प्रवचनसारोद्धारना पाउनां उपर निक्वमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २२ ॥ बताव्या प्रमाणे अर्थ अने रहस्य होवाथी वासावासं पजोसपियन्स अट्ठमभत्तियस्स तेना कल्पसूत्रना पाउनी साथे कोई पण जातना भिक्खुस्स कप्पति तओ गोअरकाला गाहावइविरोध छ ज नहि । प्रवचनसारोदारनो पाठ तो कुल भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा कवलनुं प्रमाण बतावे छे, अने कल्पसूत्रनो पविसित्तए वा ॥ २३॥ वासावासं पजोसपाठ टंकनुं प्रमाण बतावे छे। आ बन्ने ग्रन्थोना वियस्स विगिट्टभत्तियस्स भिक्खुस्स कपंति
For Private And Personal Use Only