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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯૯૨ સમીક્ષા બ્રમાવિષ્કરણ ४०3 थई जवाथी प्रमाणाधिक दोपनी व्यवस्था नहि छे; तेमां प्रथम जे मन्द जठराग्निवाळा बताव्या थई शके अने “टके शेर भाजी, टके शेर तेने तो तेटलो आहार नहि पची शकवाथी ते खाजा" जेवू थई जशे, माटे आनो रहस्यभूत प्रमाणधिक थई जशे, अत्यन्त तेज जठराग्निकांई अर्थ करवो पडशे, ते आ प्रमाणे छे:-- वाळाने तेटलो आहार ओछो पडशे अने तेनाथी कुकडी बे प्रकारनी छे: एक द्रव्य कुकडी क्षुधानी शान्ति थई शकशे नहि अथात् जे अने बीजी भाव कुकडी। तेमां द्रव्य कुकडी ते । क्षुधानी शान्तिने माटे आहार लेवानो छे ते साधुनुं शरोर समजवू, अने साधुनुं मोढुं ते साध्य साचवी शकाशे नहि, माटे आ उपयुक्त बेने माटे कईक विशेष अर्थ करवो पडशे, ते इंडं समजवु । तेमां आंख, गाल, होठ अने आ प्रमाणे के अंडोया भाव कुकडा लेवानी भृकुटिनो विकार न थाय तेवी स्थितिए जे छ । जेटलो आहार खावाथी उदर खाली न कवल मोढामां मुकी शकाय ते कुर्कुट्यण्डक रहे तेम ज बहु फुली न जाय अने विशिष्ट प्रमाण कहेवाय छे, अर्थात् जे कवल मोढामां प्रकारनी धृति पेदा थाय तथा ज्ञानदर्शनचारित्र मुकतां आंखो फाडवी न पडे, भ्रमर उंचा बगेर गुणानी वृद्धि थाय तेटला प्रमाणवाळो चडाववा न पड़े, गाल विशेष पहोळा करवा न जे आहार ते भाव कुकडी कहेवाय छे, अने पडे, होठ विशेष पहोळा न करवा पडे ते तेना बत्रीशमो जे भाग ते इंदु कहेवामां आवे कुर्कुट्यण्डकप्रमाण कवल कहेवाय छे । आवो छ । आवा प्रकारनो जे आहार ते बत्रीश अर्थ करवाथी बाल अने युवान मुनिना कवलमां कवलप्रमाग कहेवाय छे । आ अर्थ यी बाल, घणो फरक पडी जशे अने बन्ने व्यवस्थित मन्दजठराग्नि, अधिक तेज जठराग्नि, व्यवस्थित आहार लेशे । बाल मुनि प्रमाणाधिक आहार जठराग्निवाळा तथा वृद्ध वगेरेनी सुन्दर रीते लई शकशे नहि । व्यवस्था जळवाई रहे छ। आवा कवल बत्रीश अथवा मध्यम वयने आश्रीने बीजी पुरुषने, २८ स्त्राने, २४ नपुंसकने होय छे। रोते पण अर्थ थाय छे के कुकडी एटले आवा अर्थो गुरु गम वगर केवल भाषान्तर परथी कुकडी नामर्नु पक्षी, तेना इंडा प्रमाण जे क्याथी मेळवी शकाय ? कवल ते कुर्कुट्यण्डकप्रमाण कवल कहेवाय छे। वली आ गाथाना पूर्वार्द्ध परथी तो आ अर्थ मध्यम वयना जीवोने आश्रीने सामान्य मुनिओना आहारनुं प्रमाग बत्रीश कवल छे रीते घटी शके छे, परंतु मध्यम वयमां पण तेटलं ज आवे छे पण एक ज वार खावु ते त्रण भांगा पडे छे: कोईक मन्द जठराग्निवाळा वात आवी शकती नथी । आ बत्रीश कवलना होय छे, कोईक भस्मक आदि व्याधिने लईने प्रमाणथी, चार वार आठ आठ कवल खाय अत्यन्त तेज जठराग्निवाळा होय छे अने तो चार वखत पण आहार सम्भवी शके छे, कोईक मध्यम-जोईए तेवी जठराग्निवाळा होय दस के अगीयार कवल खाय तो त्रण वखत For Private And Personal Use Only
SR No.521512
Book TitleJain Satyaprakash 1936 06 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages48
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size22 MB
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