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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BHECHHEPHERDERHERBACHCHER दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें? लेखक----मुनिराज श्री दर्शन विजयजी HARIHARAHHHHCHEHEROERICE (गतांकसे क्रमशः) प्रकरण ६-आचार्य गुणसेनजी और प्रसिद्ध वाचकाचार्य श्रीनागहस्तीजी श्री देववाचकजीने “ नन्दसूप में में साफसाफ फरमाते हैं कि-इम आचार्य आचार्य मंगुके प्रांशष्य एवं आचार्य नं लक्ष्मण- नागहरितको गुरुपरंपरासे सर्वथा अनभिज्ञ हैं। के शिष्य आचार्य नागहरितजीका अच्छा इन आचार्य की कृपासे दिगम्बर समाजको परिचय दिया है । वही लिखा है कि- और भी एक दुसरा शास्त्र मिला है। ब्रह्म वहुउ वायगवंसो, जसवंसो अन्जनागहत्थीणं। हेमचंद्रके " सूउ खंधो", दिगम्बराचार्य इन्द्रवागरण-करण-भंगिय-कम्मपयडी पहाणाणं॥ नंदी के " श्रुतावतार" एवं पं० श्रीधरके ___ -नंदीसूत्र-स्थविरावली, गाथा-३० " श्रुतावतार" में बताया है कि आचार्य अर्थ-आचार्य नागहस्तिजी व्याकरण, गुणधरने पांचवे पूर्वसे " दोषप्रामृत' अपरगणित, भांगे और कर्म प्रकृतिके प्रधान ज्ञाता नाम “ कषा पराभृत" शास्त्रकी रचना की, थे, उनके वाचक वंशकी वृद्धि हो, यशः- जिसमें १५ अधिकार, १८३ गाथायें, और पुंजको वृद्धि हो । ५०३ विवरण गाथ ये थीं। यह सम्पूर्ण शास्त्र इन आचार्यका समय करीब वीर- आचार्य नागहस्तिको मुखपाठ था। निर्वागकी आऽवीं शताब्दीका उत्तरार्ध है। यति वृपभने उन आचार्य के पास यह आचार्य रेवतीनक्षत्र और ब्रह्मद्वीपिक आचार्य शास्त्र पढ़कर इसके उपर ६००० श्लोक सिंह इनके बादमें हुए हैं। ये आचार्य करीब प्रमाग टीका की। बादमें उच्चराचार्यने करीब पांचवे पूर्वके विद्या-पात्री थे। उस चूर्णीपर ही १२००० श्लोक ___ दिगम्बर ग्रन्थकार इन आचार्य को प्रमाग वृत्ति ( टीका ) बनाई। और पूर्ववित् मानते हैं, मगर इनका जीवन-परिचय "सकषायप्राभृत" ( दोषप्राभृत ) और कराने में मौन धारण करते हैं। दिगम्बराचार्य "कर्मप्राभूत" (षटूखंडागमशास्त्र ) दिगार इन्द्रनन्दी अपने श्रुताक्तार ग्रंथकी गाथा ५१ समाज के पारंगके आगम बन गये ।४३ ४३ आज ये आगम भी मौजुद नहीं हैं-देखिए, 'कंग एडवड कॉलेज-अमरावती (c. p. ) के संस्कृत अध्यापक हीरालालजी दि० जैन लिखते हैं-कि उनसे (कौण्डवुन्दाचार्यसे) For Private And Personal Use Only
SR No.521511
Book TitleJain Satyaprakash 1936 05 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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