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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org દિગમ્બર શાસ્ત્ર કેસે બને ? ૧૪૩ पुण्याश्रव कथाकोष, नन्दीसूत्र, समवा शाखायें थीं; बादमें दिगम्बर सम्प्रदाय यांग सूत्र ) में अनेक मत निकले हैं। ३० उन्होंने एक हो कर "मूलसंघ" जैसे किकी वृद्धिमें जोशिले प्रयत्न किये थे। संवत् ५२६ विक्रममें द्रविडसंघ __ शिवभूतिको दो शिष्य थे, १- निकला, संवत् ७०५ विक्रम यापनीय कुंदकुंद, २ कोट्टवीर। उन दोनेांसे स र संघ निकला जो केवलिभुक्ति आर दिगम्बर परंपरा चली ह। ( आ० स्त्री-मुक्तिका स्वीकार करता है । नि०, उत्त०) विक्रम संवत् ७०५में काष्ठसंघ चला, जो स्त्रीओंकी दीक्षामें सम्मत है । दिगम्बर ग्रन्थों में भी मूलसंघ के काष्ठासंघसे २०० वर्ष के बाद नेता कुंदकुदाचार्यको ही बताया ह । माथुर संघ ( निष्पिच्छक) चला। शुरुमें मूलसंघकी सिंहसंघ, नन्दी . सं० १५७२ विक्रमसे पहिले जिसंघ, सेनसंघ व देवसंघ ऐसी चार नप्रतिमावरोधि “ तारनपंथ " बना । उनके करीब करीब ही बने रहते हैं फिर भी न कहा जा सकता, इस प्रकारके प्रयत्नों से उत्पन्न हुआ कोई सम्प्रदाय अपने धर्मके मूल स्वरूपको जैसे के तैसे रूपमें पा जाता हो । जैनहितैषी, १४-४ पृ० ९७-९८॥ ३० दिगम्बर शास्त्रोंके अनुसार विक्रम सं० ५३६ से मतभेद होने लगे, जो करीब करीब २०० या ३०० वर्षांके फासलेमें अलग अलग फटने लगे थे। किन्तु उनसे पहिले भेद नही हुए, यह नहीं माना जाता । पहिलेके समयमें जमालि वगैरह के निन्हव-मेद हुए हैं, जिसका जिक्र असली जेन-साहित्यमें उल्लिखित है। दिगंबर सम्प्रदायने असली संघसे भिन्न होने के बाद प्राचीन जन साहित्य को छोड दिया, साथ साथमें गौशाला जमालि गोष्ठामाहिल वगैरह का इतिहास भी छूट गया, और जो नया दिगम्बर साहित्य बना, वो ही उसका प्राचीन जनसाहित्य माना गया । ३१ यापनीय संघ श्वेताम्बर व दिगम्बर के बिचमें मध्यस्थ मत था । एपिग्राफिका इन्डीका वॉ० ४ पृ० ३२८ अंत्य पारिग्राफ, हर्नलसम्पादित दि० पट्टावली, इन्डीयन एन्टीक्वेरी वॉ० २१ पृ० ६७ फूटनोट १६-१७, एपिग्राफिका कर्णाटिका वॉ० १२ प्रस्तावना पृ० ५, तत्वार्थ गु० परिचय पृ० ३३. ..... For Private And Personal Use Only
SR No.521505
Book TitleJain Satyaprakash 1935 11 SrNo 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages37
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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