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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir બંધસાહિત્યની સમીક્ષા, “ भन्ते भगवान् अपने सहित चार पुत्तको अभिवादन कर एक ओर बैठ आदमियाँका कलको मेरा भोजन स्वी- गया। एक ओर बैठे मुजे निगंठनात कार करें " पुत्तने कहा-'आराजकुमार? ' ०। इसी "भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। प्रकार राजकुमार ? दुधारा प्रश्न पुछने तब अभयराजकुमार भगवानकी स्वीक- पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा, न तिजान् भगवान् को अभिवादनकर निगल सकेगा. '।" प्रदिक्षणा कर चला गया. ___ उस समय अभयराजकुमारकी गोद मस भी हिवसे मुद्धदेव समय में एक छोटा मन्द, उतानसोनेलायक મારને ત્યાં ભેજન કરવા ગયા છે. જન (बहुतहो छोटा) बच्चा, बैठा था । तव કર્યા પછી બદ્ધ શાસ્ત્રોના કથન મુજબ भगवान्ने अभयराजकुमारको कहाભગવાન શ્રી મહાવીરદેવે (નિર્ગઠનાતપુતે (बुद्धदेव)શીખવી રાખેલ પ્રશ્ન અભયકુમાર બુદ્ધ " तो कया मानते हो, राजकुमार ? क्या तेरे या दाइके प्रमाद (= गफलत દેવને પુછે છે વાંચે તે પ્રત્તરી. से यदि यह कुमार मुख में काठ या(अभयकुमार) डला डालले तो तू इसको कया करेगा ? "कया भन्ते ? तथागत एसा वचन (अभयकुमार)बोल सकते हैं, जो दुसरेको अ-प्रिय= “निकाल लूंगा, भन्ते ! यदि भन्ते अ-मनाप हो. मैं पहिले हो ननिकाल सका, तो बायें (बुद्धदेव)-- हाथसे सीस पकडकर, दाहिने हाथसे "राजकुमार ? यह एकांशसे (स- अंगुली टेढी कर, खून-सहित भी निकाल Nथी-विना अपवाद के) नहीं ( कहा लूंगा" जा सकता)" (बुद्धदेव)(अभयकुमार) "सो किस लिये?" " भन्ते ! नाश हो गये निगंठ" (अभयकुमार)(बुद्धदेव) " भन्ते ? मुझे कुमार (बच्चे) "राजकुमार कया ऐसे बोल रहा पर दया है" है-'भन्ते ? नाश हो गये निगंठ ?" (बुद्धदेव)(अभयकुमार) ऐसे ही राजकुमार ? तथागत " भन्ते ? मैं जहां निगंठ 'नातपुत्त जिस वचन को अभूत-अ-तथ्य, अन् है, वहां गयाथा। जाकर निगंठनात अर्थ-युक्त (व्यर्थ) जानते हैं, और वह For Private And Personal Use Only
SR No.521502
Book TitleJain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size15 MB
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