________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निवार्यकारणो उपस्थित थयां होय त्यारे शास्त्रना, नीतिशास्त्रना तथा लोकव्यवनिरुपाये लाभालाभनी विचारणा करीने हारना नियमो उत्सर्ग अने अपवादमाप्रसिद्ध छपने पण ग्रहण करे. आ टी. र्गनी घटनाथो गर्भित होय छे तेम धर्मना काकार भगवानना व्याख्यानमा 'कार- नियमो पण उत्सर्ग अने अपवाद मार्गनी राणकः' 'चित्' अने 'अपि' आ त्रण घटनावाळा होय छे. धर्मना कोई पण शब्द आपेला छे तेना पर ध्यान आप- नियमो अपवाद मार्ग सिवाय होता ज यानी जरुर छे. टोकाकार भगवाने आ नथी, उत्सर्ग मार्ग ए राजमार्ग छे. अने त्रण शब्दो आपीने छत्रथी बचवार्नु तेने आयिने वस्तुनु निरुपण थाय छे. केटलुं सूचन करेल छे ते पण समजी अने हमेशनी प्रवृत्ति पण तेने आश्रयिने शकाय तेम छे उपर जणाव्या प्रमाणे होय छे अपवाद मार्ग ए कारणिक छे, टीकाकार भगवन्ते आचाराङ्गसूत्रना कादाचित्क छे, अने ते केडी समान छे. मूळमां रहेल छत्रक शब्दने अगे बे अपवादमार्गनी आचरणा लाभालाभनी प्रकारनुं व्याख्यान करेल छे. तेमां प्रथम दृष्टिए पुष्टालम्बनने आधीन छे, अने व्याख्यानमां तो कोई जातना कुतर्कनो तेनो यथार्थविचार गीतार्थ मुनिमहात्माओ अवकाश रहेतोज नथी. बीजा व्याख्यानमा करो शकनार होवाथो अपवाद मार्गनी पण जे छत्रग्रहण बतावेल छे ते अप- दोरी भवभोरु गोतार्थमुनिमहात्माओने वाद मागें छे तेम जणांववामां आवेल आधीन छे. छे. टीकाकार भगवन्ते एकज पाठy प्रस्तुतमां छत्रनी बाबतमा प्रथम विधिमार्गने आश्रयिने व्याख्यान दशवैकालिकसूत्रनुं कथन "छत्रनुं धारण कर्यु छे. अने त्यारबाद अपवाद मार्गने करवु ते अनर्थने माटे छे" अने सूत्रआश्रयिने व्याख्यान कयु छे. जे वस्तुने कृताङ्गनुं कथन " मुनिओ छत्र धारण माटे उत्सर्गमार्ग होय तेने माटे अपवाद करे नहि, मुनिओ छत्रथी रहित होय मार्ग पण होय छे जेने माटे कहेल छे, छे" आ बधुं उत्सर्गमार्गे छे. अने " उत्सर्गापवादौ मिथः संवलितो' अर्थात् टोकाकार भगवन्ते बोजा व्याख्याना उत्सर्गमार्ग अने अपवादमार्ग परस्पर जे छत्रनुं ग्रहण करवानुं बताव्युं ते गुंथायेला होय छे. ज्यां उत्सर्गमार्ग होय अपवादमार्गे छे. उत्सर्गशास्त्रीयो त्यां अपवादमार्ग होय छे, अने ज्यां द्देश्यतावच्छेदकावच्छिन्नमां अपअपवादमाग होय टां उत्सर्गमार्ग होय छे. वादशास्त्रीयादेश्यतावच्छेदकावच्छिन्नत्वेन आज वातने लक्ष्यमा राखीने नीचे प्रमाणे संकोच थतो होवाथी, अर्थात् अपवादः बताघवामां आवेल छे. के "यावन्त्येवो. शास्त्रना विषयने बाद करीने उत्सर्गसर्गपदानि तावन्त्येवापवादपदानि यावः शास्त्रनो अर्थ थतो होवाथी "छत्तस्स य म्त्येवापवादपदानि तावन्त्येवोत्सर्गपदानि" धारणहार" आ दशकालिकनी गाथार्नु जेटलां उत्सर्गनां स्थान छे तेटलांज अपवा- व्याख्यान टीकाकार भगवान नीचे प्रमाणे दनां स्थानो छे, अने जेटलां अपवादनां करे छे. "छत्रस्य च लोकप्रसिद्धस्य स्थानते तेटलांज उत्सर्गनां स्थान छे. जेम धारणमात्मानं परं वा प्रत्यनर्थाय, आगा. राज्यना; वैद्यकना, ज्योतिषना, निमित्त- दग्ळानाद्यालम्बनं मुक्त्वा चानाचरितम्'
For Private And Personal Use Only