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एम बनेल छे. अथवा छत्रमिव कायति कदाच एम कहेवामां आवे के छत्रक भाच्छादकत्वादिधर्मसाधर्म्यात् स्वोपभो. शब्दथी जो वर्षाकल्पादि अर्थात्-कम्बलगकृतो जनान् शब्दयतीति छत्रकम् । विशेष विगेरे लेवाना छे तो छत्रक ढांकी देवु विगेरे स्वभावनो समानता शब्द नहि मुकतां वर्षाकल्पादि शब्द ज होवाथी छत्रनी जेम पोताना उपभोग सूत्रमा मुकवो उचित हतो. ते केम अहिं करनार माणसोने जाणे बालावतुं होय न मुक्यो. आना जवाबमां जणाववानुं जे नहि शुं आवा प्रकारचें जे होय ते छत्रक ढांकवामा अत्यन्त समर्थ एवा कम्बल कहेवाय छ, विगेरे अनेक प्रकारे छत्रक विशेषने जणाववा माटे वर्षाकल्पादि शब्दनी सानिका थई शके छे. तथा शब्द नहि मुकतां छत्रक शब्द मुकेल छत्रक शब्दनो अर्थ शब्दस्तोममहा. छ. जेम 'गङ्गायां घोषः' गंगा नदीना की. निधिनामनो जैनेतरकृत कोष छे तेमां नारा पर गायनो वाडा छ, अहिंयां नीचे प्रमाणे जणावेल छे-छत्र-पु० छत्र- गङ्गाना कोनाराने जणावनार गङ्गातीर मिव कायति के कः । (राङ्गाकुलेखाडा) विगेरे शब्द नहि मुकतां गङ्गाप्रवाहगत वृक्षे मत्स्यरङ्गे पक्षिणि। च स्वार्थकेन् । शैत्यपावनत्वादिधर्मने गङ्गाकीनारामां छत्रे न० । आ प्रमाणे छत्रक शब्दना जणाववा माटे जेम 'गङ्गा' शब्द मुकवामां अनेक अर्थ थाय छे तेमां प्रस्तुतमां छत्रक आवेल छे. तेवी रीते छत्रगताच्छादनाः शब्दथी वर्षाकल्पादि एटले कम्बलवि- त्यन्तोपकारकत्वादिधर्मने कम्बलमां जणाशेष विगेरे लेवाना छे.
ववामाटे वर्षाकल्पादि शब्द नहि कदाच एम कहेवामां आवे के “यो- मुकतां छत्रक शब्द वापरेल छे. गाढिवलयसी" ए न्यायने अनुसारे अथवा तो चार अनुयोगमय सूत्र रुढिथी थतो अर्थ लेवो जोईए. परन्तु होवाने लइने बीजा त्रण अनुयोगमा अर्थ योगथी थतो अर्थ न लेवो जोइए. अने विशेषनो लाभ करवा माटे आवो शब्द तमे तो योगथो थतो अर्थ करी मुकवामां आवे तो ते पण व्याजबी छे. वर्षाकल्पादि ग्रहण करो छो ते अयुक्त तथा अपवाद मार्गने आयिने आनुं व्याछ. आना जवाबमां जणाववानुं जे उप- ख्यान करतां टीकाकार भगवान् नीचे रोक्त न्यायमा बाधापतिसन्धाने सति' प्रमाणे जणावे छे, “यदि वा कारणिकः एवं विशेषण साथे छे. अर्थात्-बाधाप्र. चित् कुङ्कणदेशादावतिवृष्टिसम्भवातिसन्धाने सति योगादूढिबलियसो' एवो च्छत्रकमपि गृहोयात्" अथवा कारणिन्याय छे. घाधनुं ज्ञान ज्यां न होय त्यां कः एटले अपवाद मार्गने अनुसरनार, योगथो रूढि बलवान छे पण दरेक ठे- अर्थात् अपवाददशामां क्वचित् एटले काणे नहि, अन्यथा अनेक प्रकारना दोषो कोइक वखते अर्थात् हमेशां नहि आवे छे प्रस्तुतमां विधिमार्गने आश्रीने कुंकणदेश विगेरेमा । अतिवृष्टिनो छत्रक शब्दनो अर्थ छत्री करवामां दश- सम्भव होवाथी प्रसिद्ध छत्रकने वैकालिक विगेरे शास्त्रनो विरोध आवे पण ग्रहण करे। अर्थात् मुनि कुंकणदेश छ माटे योगार्थ लइ शकाय. अने तेम विगेरेमा गरला होय अने त्यां अनर्गल करवामां कोइ पण जातनो दोष नथी. वर्षाद पडतो होय, तथा ग्लानादिक अ.
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