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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समीक्षाश्रमाविष्करण लेखक - पूज्य उपाध्याय श्रीमद् लावण्यविजयजी महाराज, क्या साधु छाता भी रक्खे ? ed आपणे प्रस्तु विषयपर आवीए. ते एके " जैनश्वेताम्बरशास्त्रकारोए तेमना मुनिओने छत्र राखवानी छुट आपेली छे आ आ लेखकनुं कथनछे." सेना जवाबमां अमारे जणाववानुं के अमो उद्घोषणा करी ने कहीए छोए के अमारा जैन श्वेताम्बरमुनिओ बीलकुल छत्र धारण करता नथी. तेमज जैनश्वेताम्बर शास्त्रकारो पण छत्रनो छडेचोक निषेधकरे छे" ते माटे देखो दशवैकालिकसूत्रनुं कथन "छत्तरल य धारणठाए- [छत्रस्य च धारणमनर्थाय ] छत्रनुं धारण करवुं ते मुनिओने अनर्थने माटे छे अर्थात् मुनिओ छत्रने धारण करे नहि. तथा जूओ-सूत्रकृताङ्गसूत्र प्रथमश्रुतस्कंध, नवमुं धर्मा ध्ययन गाथा अढारमी " पाहणाओ य छत्तं च णालीयं वालवीअणं परकिरियं अनमनं च तं विज्जं परिजाणिया " ॥ १८ ॥ [ उपानहौ च छत्रं च नालिकां वालव्यजनम् । परक्रियामन्योन्यं च तद् विद्वान् परिजानीत ।। १८ ।।] आ गाथानी अंदर 'पाहणाओं' शब्दधी जोडानो अने 'छत्तं ' शब्दथो छत्रनो शास्त्रकार भ गवान् स्पष्ट निषेध करे छे. वळी आज सूत्रकृताङ्गसूत्रना बीजा श्रुतस्कन्धना बीजा क्रियास्थानअध्ययनमां पण मुनि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओने नीचे जणावाता विशेषणोवाळा बताव्या छे. देखो ते पाठ- अछत्तर अणोवाहए [ अच्छत्रकोऽनुपानत्कः ] मुनिओ छत्ररहित अने जोडारहित होय छे. आवीरीते अनेक शास्त्रम अनेक ठेकाणे जोडा अने छत्र राखवानो निषेध प्रति· पादन करेल छे. आना पर जो लेखके विचार कर्यो होत तो तेने आ प्रश्ननो अवकाश रहेत नहि. परन्तु सुझे क्या थी? । प्रथम बताववामां आवेला आचाराङ्गसूत्रना पाठमा 'जेनी साथे दीक्षा लीघी होय अथवा रहेता होय तेना छत्रक विगेरे रजा सिवाय लहे नहि. एम कहीने रजा होय तो लहे' एम जे सूचववामां आवेल छे तेनुं व्याख्यान करतां टीकाकार भगवान् स्पष्ट जणावे छे के 'छत्रक' एटले वर्षाकल्पादि, अर्थात्काम्बलविशेष विगेरे जाणवां, छत्रक शब्दनो आवो अर्थ केवी रीते थाय छे तेने माटे टीकाकार भगवन्ते तेनो योगार्थ नीचे प्रमाणे जणावेल छे.'छद' अपवारणे' छादयतीति छत्रं वर्षाकल्पादि ' 'छंद' धातु ढांक एवा अर्थमां छे. अने तेथी जे ढांके ते छत्र कद्देवाय, एवं कोण ? तो कहे छे के वर्षाकल्पादि अर्थात्-कम्बलविशेष विगेरे, 'क' प्रत्यय भद्दीयां स्वार्थमां आववाथी छत्रक For Private And Personal Use Only
SR No.521502
Book TitleJain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size15 MB
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