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भी जैन इतिहास के अजोड साघन विंशतिस्तव, वंदनक, प्रतिक्रमण, कायो
स्वरूप विद्यमान है । ५
११ अंग - ( गणधर श्री सुधर्मास्वामी संगृहित) आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, विवाह प्रज्ञप्ति ( भगवतीजी) ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अंतकृतदशांग, अनुत्तरोपपातिक दशांग, प्रश्न व्याकरण, ओर विपाकसूत्र ( उस समय जिस आगमका जो अंश उपलब्ध था, उसका वोही अंश खा गया । बारवा अंग दृष्टिवाद नहीं लीखा गया. इसिसे संवत् १००० बीरनिर्वाण में उनका सर्वतः उच्छेद हो गया ) ।
६ आवश्यक–सामायिक, चतु
१ श्रीसुधर्मास्वामी
( पंचमगणधर ) जंबूस्वामी
३ प्रभवस्वामी
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४ शय्यंभवसूरि
५ यशोभद्रसूरि
५ श्री करपसूत्रमें स्थवीरावली में आचार्य परंपरा इस प्रकार हैभगवान महावीरदेव
१४ आर्यरथ
१५ आर्यपुष्यगिरि
६ संभूतिविजय (श्रीभद्रबाहु स्वामी) ७ स्थूलभद्रस्वामी
८ सुहस्तिसूरि (आर्यमहागिरि)
९ सुस्थितसूरि (सुप्रतिबद्ध ) १० इन्द्रदिन्नसूर
११ दिनसूरि १२ सीहागिरि १३ वज्रस्वामी
त्सर्ग, प्रत्याख्यान ।
२९ उत्कालिक - दशवैकालिक, कल्पिताकल्पित, लघुकल्पसूत्र, महाकल्प सूत्र, औपपातिक, राजप्रश्रेणी, जीवाभि गम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नंदी, अनुयोगद्वार देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चंद्रवेध्यक, सुर्यप्रज्ञप्ति पौरशीमण्डल, मंडलप्रवेश, विद्याचारण विनिश्रय, गणिविद्या, ध्यानविभक्ति, मरणविभक्ति, आत्मविशुद्धि, वीतराग सत्र, संलेषणासूत्र, विहारकल्प, चरणविधि, आतुरप्रत्याख्यान, महामत्या -
ख्यान ।
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३१ कालिक - उत्तराध्ययनजी
१६ आर्य फल्गुमित्र १७ आर्यधनगिरि
१८ आर्यशिवभूति १९ आर्यभ
२० आर्यनक्षत्र
२१ आर्यरक्ष
२२ आर्यनाग
२३ आर्यजेहिल २४ आर्यविष्णु
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