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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ भी जैन इतिहास के अजोड साघन विंशतिस्तव, वंदनक, प्रतिक्रमण, कायो स्वरूप विद्यमान है । ५ ११ अंग - ( गणधर श्री सुधर्मास्वामी संगृहित) आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, विवाह प्रज्ञप्ति ( भगवतीजी) ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अंतकृतदशांग, अनुत्तरोपपातिक दशांग, प्रश्न व्याकरण, ओर विपाकसूत्र ( उस समय जिस आगमका जो अंश उपलब्ध था, उसका वोही अंश खा गया । बारवा अंग दृष्टिवाद नहीं लीखा गया. इसिसे संवत् १००० बीरनिर्वाण में उनका सर्वतः उच्छेद हो गया ) । ६ आवश्यक–सामायिक, चतु १ श्रीसुधर्मास्वामी ( पंचमगणधर ) जंबूस्वामी ३ प्रभवस्वामी www.kobatirth.org ४ शय्यंभवसूरि ५ यशोभद्रसूरि ५ श्री करपसूत्रमें स्थवीरावली में आचार्य परंपरा इस प्रकार हैभगवान महावीरदेव १४ आर्यरथ १५ आर्यपुष्यगिरि ६ संभूतिविजय (श्रीभद्रबाहु स्वामी) ७ स्थूलभद्रस्वामी ८ सुहस्तिसूरि (आर्यमहागिरि) ९ सुस्थितसूरि (सुप्रतिबद्ध ) १० इन्द्रदिन्नसूर ११ दिनसूरि १२ सीहागिरि १३ वज्रस्वामी त्सर्ग, प्रत्याख्यान । २९ उत्कालिक - दशवैकालिक, कल्पिताकल्पित, लघुकल्पसूत्र, महाकल्प सूत्र, औपपातिक, राजप्रश्रेणी, जीवाभि गम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नंदी, अनुयोगद्वार देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चंद्रवेध्यक, सुर्यप्रज्ञप्ति पौरशीमण्डल, मंडलप्रवेश, विद्याचारण विनिश्रय, गणिविद्या, ध्यानविभक्ति, मरणविभक्ति, आत्मविशुद्धि, वीतराग सत्र, संलेषणासूत्र, विहारकल्प, चरणविधि, आतुरप्रत्याख्यान, महामत्या - ख्यान । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ कालिक - उत्तराध्ययनजी १६ आर्य फल्गुमित्र १७ आर्यधनगिरि १८ आर्यशिवभूति १९ आर्यभ २० आर्यनक्षत्र २१ आर्यरक्ष २२ आर्यनाग २३ आर्यजेहिल २४ आर्यविष्णु For Private And Personal Use Only
SR No.521501
Book TitleJain Satyaprakash 1935 07 SrNo 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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