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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशाश्रुत, कल्प, व्यवहार, निशिथ, महानिशिथ, ऋषिभाषित, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरभज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति लघुविमानप्रविभक्ति, महाविमानप्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, विवाहचूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलंधरोपपात, देवेन्द्रोप www.kobatirth.org " पात, उत्थानसूत्र, समुत्थानसूत्र, नागपरियावणिका, निरयावलिका, कल्पिता, कल्पावंतसिका, पुष्पिता, पुष्पचूलिका वृष्णिदशा, प्रकीर्णक - भगवान् महावीर के प्रत्येक शिष्यने एक एक पइन्नय बनाया था, जिनकी संख्या १४००० थी आगम लेखनके समय उनमें से कतिपय लोखे गए। (नंदी सूत्र ४४ ) श्रीस्थानांग सूत्र विगेरह में ओर अधिक आगमोकी भी यादी मीलती है। २९ आर्यहस्ति ३० आर्यधर्म ३१ आर्यसिंह २५ आर्यकालक २६ आर्यसंपलित ( आर्यभद्र ) २७ आर्यवृद्ध २८ आर्यसंघपालित Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतिम पूर्वविद् युगप्रधान श्री सत्यमित्र सूरि था । संवत् १००० वीर निर्वाण सं०५३० विक्रम वर्ष में आप का स्वर्गगमन हुआ, और १४ पूर्वके ज्ञान का विनाश हुआ। ६ उपर लीखे आगम में से आज भी बहोत से विद्यमान है। यदि उन का विनाश हो जाय तो सारा जैनशासनजैनधर्म का भी विनाश ही समजना । क्या कोइ भगवान् महावीर की वाणी का सर्वथा विनाश मान कर उस के बाद नए ग्रन्थ बना कर उन में भगवान की वाणी मनाने चाहे वो ठिक माना जाय ! हरगीज नहीं । जब तक भगवान महावीर या १० पूर्वी के बनाए हुए आगम मोजूद है, तब तक ही जैन शासन जयवंत है । वीर निर्वाण से २१००० वर्ष तक जिनागम को उपस्थीति रहेगी, एवं जैनशासन का सितारा भी चमकता रहेगा । ३२ आर्यधर्म ३३ आर्यशांडिल्य ( आर्यजंबू) ३४ आर्यनंदी ३५ देसिगणिक्षमाश्रमण ३६ स्थिरगुप्तक्षमाश्रमण ३७ स्थविरकुमारधर्म ३८ देवर्द्धिक्षमाश्रमण कल्पसूत्रस्थविरावली पृ. ६३ से ७० दे० ला० पु० फंडकी और से प्रकाशित ६ आगमप्रवाहका अधिक परिचय हमारा " जिनागमवचनानुं इतिवृत्त " से जानना For Private And Personal Use Only
SR No.521501
Book TitleJain Satyaprakash 1935 07 SrNo 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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