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________________ दिला सकें। ईश्वर के पास इसी प्रार्थना के साथ प्रदर्शन का उद्घाटन होने की मैं घोषणा करती हूँ। तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन का ध्यान रखते हुए कुछ बातें अत्यंत महत्त्वपूर्ण जान पड़ती है। स्वतंत्र भारत के बालक सबल हो यह आशावादी दृष्टिकोण है। तो राष्ट्रवादी बनकर भारत को खोई हई प्रतिष्ठा प्राप्त कराए यह दूरदर्शिता भी है। ब्राह्मणेतरआंदोलन में तत्कालीन नेताओं की पत्नियाँ सार्वजनिक जीवन में बहुत कम दिखाई देती हैं। श्री भास्करराव जाधव जी की भतीजी हीराबाई जी भापकर (बापूसाहब भापकर जी की पत्नी) 1940 के पश्चात् पूना के राजकीय और सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत थी। स्त्री-विषयक आंदोलन की समस्याओं का अनुभव होने के कारण कोल्हापुर के दीवानपद पर आते ही 11 जून, 1926 को बालविवाह-प्रतिबंधक-प्रस्ताव पारित किया। कोल्हापुर-संस्थान में लड़का 14 साल की उम्र का और लड़की 10 साल की होने से पहले विवाह करनेवालों को 2000 रु. जुर्माना और सजा मुकर्रर की गयी। इस कायदे में विवाह की उम्र इतनी कम क्यों की गई? इसकी आज भी आशंका है, क्योंकि उन्होंने इससे पहले लड़का 21 का और लड़की 18 की पूर्ण हो इस बात का आग्रह किया था। शायद तत्कालीन लोगों के दबाव में कायदा करना पड़ा हो —ऐसा बहुत संभव हो। 1940 के अखिल भारतीय अधिवेशन के साथ 'ब्राह्मणेतर-परिषद् अधिवेशन बेलगाम' में माणिकबाग. में आयोजित किया गया। कोल्हापुर के डॉ. मालतीबाई मुले जी की अध्यक्षता में 'जैन महिला परिषद्' का अधिवेशन आयोजित किया गया। श्रीमती नायडू जी इस महिला-अधिवेशन को भेंट दे गयी। कुछ प्रस्ताव आज भी मननीय हैं.. जब तक महिलाओं को स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, देश को भी नहीं मिलेगी और अगर ली भी गयी, तो टिकेगी नहीं। महिलाओं के लिए पाठशाला और महाविद्यालय शुरू करें। मतदान का अधिकार दें। काम के घंटे और पगार में स्त्री-पुरुषों को गुलामी में रखते हैं ब्रिटिशों की गुलामी से मुक्ति चाहते हैं। यह प्रकृति का नियम है कि जो दूसरों को गुलाम बनाता है, वह किसी न किसी का गुलाम ज़रूर बनता है। स्त्रीवादी-दृष्टिकोण से कांग्रेस की स्वतंत्रता की माँग का यह सीधा-सीधा विरोध था। ___ 'अखिल भारतीय महिला परिषद्' की स्थापना 1926 में हुई। इसी पृष्ठभूमि पर आण्णासाहेब जी ने जैन महिला परिषद्' के 29वे अधिवेशन में इस परिषद् की घटना तैयार की। एक रुपया सभासद-फीस और सत्रह रुपये आजीवन-सभासद-फीस तय की गई। जैनधर्म और स्त्री-शिक्षा की प्रचार-प्रसार का उद्देश्य सफल करने के उद्देश्य से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और दो सचिव के पद निर्माण किये गये। इसी घटना में कुछ परिवर्तन होकर आज भी यह परिषद् इसी नाम से कार्यरत है। मात्र रमबाई रानडे जी का 15.2.1929 का पत्र यानि आण्णासाहब जी के काम की रसीद थी। चिट्ठी में जस्टिस रानडे जी का वाडा, पूना ऐसा पता था। वे लिखतीं हैं..... रा.रा. आण्णा बाबाजी लठे, 00 84 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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