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बालविधवा थीं, उससे विवाह न कर, प्रथम-पत्नी के मृत्युपश्चात् उन्होंने कु. ज्योत्स्ता कद्रे से दूसरी शादी की। विरोधियों ने उन पर व्यंग्य किये।
फिर भी आण्णासाहब जी चुप ही रहे। मेरे अनुसंधान-काल में मैंने जब श्रीमती कलंत्रे जी से भेंट की, तो इस प्रश्न के संबंध में पूछताछ की कि “आण्णासाहब जी ने तब आप से विवाह क्यों नहीं किया?" इसका उत्तर देते हुए वे बोली, "उन्होंने मुझे पूछा मेरी बहन की बीमारी में मैं वहीं रहती थी। परन्तु विवाह से मुझे इनकार था। मुझे स्त्री-शिक्षा का कार्य करना था। मेरी इच्छा ज्ञात होने पर हमेशा उन्होंने मेरी सहायता और मार्गदर्शन किया। उनकी बदौलत ही आज मैं इतना बड़ा काम कर सकी।"
इसी श्रीमती कळत्रे ने पूना के 'मैनाबाई श्राविकाश्रम' में रहकर अपनी शिक्षा पूरी की। 1922 में सांगली में जैन श्राविकाश्रम' की शुरूआत की। 1949 से 1952 तक सांगली मतदार-संघ से विधायक के रूप में चुनी गयी। ___आण्णासाहब जी की द्वितीय पत्नी ज्योत्स्नाबाई ने भी उनकी स्त्री-शिक्षा के कार्य में मदद की। 1914 के बाद उनके जीवन में एक भयंकर तूफान उठा। उनके सुधारवादी विचारों के कारण छत्रपति शाहू जी के दरबार में उनकी महत्ता बढ़ती गयी, जो गायकवाड-गुट के लिए सिरदर्द बन गयी। कल्लाप्पा निटवे जी जैसे सनातनी जैनों से हाथ मिलाकर उन्होंने कुछ ऐसी खिचड़ी पकायी कि कोल्हापुर में घटे फरवरी 1914 के 'डामर प्रकरण' में लट्टे जी को फंसाया गया और छत्रपति शाहू जी को उनके विरुद्ध कर दिया। आण्णासाहब जी ने कोल्हापूर छोड़ा और बेलगाम में जाकर वकालत का व्यवसाय शुरू किया। छत्रपति शाहू जी के मरणोपरांत (1922) छत्रपति राजाराम महाराजा की विनती पर फिर से कोल्हापुर लौटे और 1925 से 31 तक संस्थान के दीवान (मंत्री) पद पर कार्यरत रहे। इसी काल में उनका स्त्री-विषयक कार्य गतिमान रहा। कोल्हापुर के 'चेम्सफोर्ड बाल-संगोपन केंद्र' का प्रदर्शन-उद्घाटक के रूप में आण्णासाहब जी की पत्नी ज्योत्सनाबाई ने अत्यंत मार्मिक भाषण हुआ। _ "भयंकर अज्ञान और विपुल जनसंख्या के कारण देश में बालसंरक्षण जैसा होना चाहिए, नहीं हो रहा है। अज्ञानी और अशिक्षित माताओं को स्वच्छता का श्रीगणेश भी मालूम नहीं। दरिद्रता और अज्ञान को भयंकर-रूढ़ियों का भी साथ मिला है। बालविवाह से दुर्बल-बच्चे पैदा हो रहे हैं। मर्द मावलों की ताकत पर छत्रपति शिवाजी महाराजा ने स्वतंत्रता प्राप्त की। गली-गली अखाड़े निकालकर छत्रपति शाहू जी ने कोल्हापुरवासियों की तबीयत तंदुरुस्त रखी। बालसंरक्षण एक शास्त्र है। ऐसे शास्त्र की जानकारी देने के लिए देहात-देहात में शाखाएँ निकालना जरूरी है। अपने-अपने गाँवों में अच्छी दाई-माँ तैयार करें। संभव हो तो गौशालाएँ रखें, जिससे बच्चों को शुद्ध दूध प्राप्त हो। जिस भूमि में भीम जैसा बलवान्, अर्जुन जैसा रण-धुरंधर और शिवाजी जैसा राष्ट्रवीर पैदा हुआ हो. उसी भूमि में और भी राष्ट्रवीर पैदा हों, जो हिंदुस्तान को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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