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________________ मचाते, हमारे मित्र-अगर किसी मत की युक्तायुक्तता के बारे में अपना अभिप्राय दे, तो उचित रहेगा। दूसरे समाज के सुधारक स्त्री-पुरुषों के विचार अपने समाज में जड़ पकड़े यह लढे जी का प्रयास रूढ़िवादी जैन कतई पसंद नहीं करते थे। फिर भी कड़ी टीका-टिप्पणियों को सहते हुए वे अपना कार्य अखंड करते रहे। इसी वजह से 1990 के अधिवेशन में बालविवाहों की घटती हुई संख्या देखकर खुशी जाहिर करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। “पूर्व-प्रस्तावों का जैनसमाज आदर करता है, इसलिए परिषद् को बहुत आनंद हुआ है।" 1909 के अधिवेशन को जानबूझकर उपस्थित मान्यवर समाजसेवक, 'सर्व्हटस ऑफ इंडिया' के सभासद, सेवा सदन के संचालक माननीय गोपाळराव देवधर जी ने इस प्रस्ताव का जोरदार समर्थन किया। समस्त सामाजिक सुधार का मूल प्रौढ-विवाह से संबंधित है – इसका विश्लेषण समग्र और मुद्दों पर जोर देकर जानकारी दी। वे बोले, हमारे समाज में अविवाहित रहकर अपने ज्ञान और सामर्थ्य का लाभ दूसरों तक पहुँचाने की तैयारी में विपुल अविवाहित स्त्री-रत्न मौजूद है। जिन्हें शक हो, वे पूना-मुंबई जाकर वहाँ के उदाहरण देखें । इसलिए इस सवाल पर आनाकानी नहीं चलेगी; क्योंकि समाजसुधारओं का मूल-संबंध इसी से है। विवाह के समय पति से पैसे लेकर बेटी देने की यानि 'कन्याविक्रय' की रूढ़ि थी। बेटी के माँ-बाप से प्रतिज्ञापत्र लिखवाकर छपवाने की प्रथा भी थी। ब्राह्मणेतर-आंदोलन के मशहूर कीर्तनकार तात्यासाहब चोपडे जी ने ग्रामीण-भागों में कन्याविक्रय' विषय पर कीर्तन शुरू किये। जिससे जनजागृति होने लगी। कोल्हापुर के जैन-बोर्डिंग में इस समय कर्मवीर भाऊराव पाटील जी छात्र थे। वे चोपडे जी के साथ ग्रामीण-विभागों में कीर्तन के माध्यम से शिक्षा, समाजसुधार और सत्यशोधक-विचारों का प्रचार-प्रसार करते थे। 1902 से 1914 तक आण्णासाहब जी जैन-बोर्डिंग के अधीक्षक होने के नाते वही आंदोलन का केन्द्र था और छत्रपति शाहू जी को इस पर भरोसा था। विवाह की बारात के सामने एवं 'श्रुतपंचमी' (जैनशास्त्र का पूजन कर जुलूस निकालने का दिन) के दिन नाचनेवालियों का नाच रखना प्रतिष्ठा का कार्य माना जाता था। आण्णासाहब जी ने इस प्रथा का कड़ा विरोध किया। खरीदकर महिलाओं को नचाना और सामुदायिक रीति से वीभत्स बोलना, यह स्त्री-जाति का अवमान है -यह खुलेआम कहने का धैर्य दिखाने से तत्कालीन सनातनी लोगों की रोष का वे कारण बने। ___ लड़कों के साथ लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त हो, इस विचार से 1908 को कोल्हापुर में जैन-श्राविकाश्रम की (लड़कियों का वसतीगृह) शुरूआत की। इस वर्ग का निरीक्षण करने आये बेलगाम के आण्णा फडयाप्पा चौगुले लिखते हैं प्रौढ-महिलाओं के वर्ग में गया, तो वहाँ कोई भी न था। यहाँ पर महिलाएं ही नहीं हैं, तो परीक्षण क्या करेंगे? तब जाकर अधीक्षिका द्वारा जानकारी मिली कि, शर्म के मारे प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0081
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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