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उल्लेख है । (7) सातवाँ कुषाण राजा का पंजतार प्रस्तर अभिलेख' है, जिसकी भाषा 'प्राकृत' व लिपि 'खरोष्ठी' है। इसका समय 65 ई. है, और इसका विषय महाराजा कुषाण के शासनकाल में मोयिक द्वारा शिवमन्दिर के निर्माण तथा विदेशियों के भारतीयकरण का प्रमाण है ।
ज्ञातव्य है कि अभिलेखों में संस्कृत का प्रयोग पहली दूसरी शती के शक - शासकों के युग में यदा-कदा मिलता है। उनके पश्चिमी भारतीय पुरालेख और सिक्कों से सम्बन्धित लेखों में आगे की दो शताब्दियों तक संस्कृत का प्रयोग प्राकृत के मिश्रण के साथ मिलता है । सातवाहन-शासकों के सारे अभिलेख प्राकृतभाषा में मिलते हैं ।
सातवाहन वंश के अभिलेख
इनमें नागनिका का नानाघाट गुहा - अभिलेख ई. पू. प्रथम शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लिखित प्राकृतभाषा का अभिलेख है, जिसमें सातवाहनों के समय दक्षिण भारत के राजनैतिक, धार्मिक एवं आर्थिक अवस्था का उल्लेख है ।
गौतमीपुत्र शातकर्णी का नासिक - गुहालेख
यह दो अभिलेख नासिक महाराष्ट्र में उपलब्ध हुए हैं, जिनकी भाषा प्राकृत एवं समय 106-30 ई. लगभग है ।
वाशिष्ठीपुत्र पुलमावि का नासिक गुहालेख
इसका समय लगभग 141 ई. है । प्राकृतभाषा में लिखित शिलालेख में पुलमावि की माता द्वारा गुहावासदान का उल्लेख है ।
पूर्वी - भारत के दूसरी शती के पुरालेखों में आर्य विश्वामित्र का केलवन (जिला पटना, बिहार) (समय 186 ई.) मिश्रित प्राकृत - संस्कृत में है । इसीप्रकार दूसरी-तीसरी शती के कौशाम्बी के राजाओं के लेख संस्कृत में लिखे गए तथा उन पर प्राकृत का अत्यल्प प्रभाव है।
दक्षिण भारतीय अभिलेख
में
परन्तु दक्षिण-भारतीय बहुसंख्यक - अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि वहाँ राजदरबारों प्राकृत चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक बराबर लोकप्रिय रही। यहाँ के 'शालकायन वंश' के प्रारंभिक अभिलेख साहित्यिक - शैली की प्राकृत में है। इनको चौथी शती में रखा जा सकता है। कदम्ब-शासक मयूरशर्मन का चौथी - शताब्दी का 'चन्द्रवल्ली लेख ' साहित्यिक प्राकृतभाषा में लिखा गया है । इसीप्रकार शिवस्कन्दवर्मन (चौथी शती का मध्यभाग) की 'मयोदवोलु' और 'हिरहदगल्ली' - पट्टिकायें साहित्यिक प्राकृत में लिखी गयी हैं। परन्तु उनसे सम्बद्ध मुहरों के लेख संस्कृत में हैं । स्कन्दवर्मन के समय (चौथी शती के अन्तिम चरण) की 'गुनपदेय ताम्र-पट्टिकाएँ भी साहित्यिक प्राकृत में मिली हैं,
प्राकृतविद्या + जनवरी - जून 2003 (संयुक्तांक )
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