________________
भाव से जाते हैं। कैलाश पर्वत पर कौन जाता है, कितने जाते हैं; तो क्या आदिनाथ भी निर्वाण-स्थली मानना भूल जावें? आरोपित-श्रद्धा भी ज्ञान के प्रकाश में बदल जाती है।
आपने लिखा आचार्य-प्रवर श्री विद्यासागर जी के संघ से लेकर अन्य सभी मुनिसंघ इसी पक्ष में हैं। इस सम्बन्ध में उन्हें अपनी असत्य-कल्पना के प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिए। चालू बात लिखकर भ्रम पैदा नहीं करना चाहिये। हमारी जानकारी में आचार्यश्री ने अपना मौन-भंग नहीं किया है, प्रकरण चिंतन की प्रक्रिया में है। यद्यपि उनके गुरु और शिष्यत्रय यथा- मुनिश्री समता सागर जी, मुनिश्री प्रमाण सागर जी, उपाध्याय गुप्तिसागर जी आदि एवं अन्य आचार्य-मुनिराज कुण्डपुर-विदेह (वासोकुण्ड-वैशाली) को महावीर की जन्मस्थली निर्विवादरूप से स्वीकारते हैं।
उपसंहार :- समग्रता में यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि 'कुण्डपुर-विदेह' कौन-सा स्थल स्वीकार किया जाए और कौन नहीं। जिसकी जहाँ श्रद्धा है, उसकी अपनी निजी श्रद्धा है। यह भी महत्त्वपूर्ण नहीं है कि कौन अविकसित क्षेत्र/तीर्थ का विकास कर रहा है। जिनेश्वरी दीक्षा की भावना के प्रतिकूल यह कार्य इष्ट नहीं है। अध:कर्म प्रवृत्ति पाप/हिंसामूलक है। मूल बात सिर्फ इतनी है कि हम अपनी बौद्धिकता, इष्ट-भावनाओं एवं पद की मर्यादा के प्रति ईमानदार रहें। यदि हमने दिगम्बर-जैन-आगम को आधार बनाया है, तो उसी से सिद्ध करें, भले ही सिद्ध हो या न हो। प्रबल युक्ति एवं पक्ष को स्वीकार करें। यदि परिस्थितिजन्य-साक्ष्य को सम्मिलित करना है, तो फिर एकांगी विरोधी-उपदेश क्यों दें और अपने पक्ष के समर्थन-हेतु मूल-आगम क्यों बदलें? साम-दाम-दण्ड-भेद से अपनी आधारहीन-कल्पनाओं को प्रमाण माने तथा अपर-पक्ष के ठोस-सबल तर्क, साक्ष्य, जैनेतर-साहित्य आदि को दृष्टि करें और पूर्वविद्या-मनीषियों, समाजसेवकों को निराधार लांछित करें। तीर्थ विकास हो, उसे करें; परन्तु अकारण विद्वान/पत्रकार/जिनेश्वरी दीक्षाधारकों में मतभेद, ईर्ष्या या अहंकार/विद्वेष की भावना न पनपने दें, –यही भावना है। भगवान् महावीर की जन्मस्थली कुण्डपुर (वासोकुण्ड) को सादर नमन !
-
निमित्त-जैमितिक-संबंध 'वृत्त्यर्थ नातिचेष्टेत सा हि धात्रैव निर्मिता।
गर्भादुत्पत्तिते जन्तौ मातुः प्रस्रवत: स्तनौ ।।' अर्थ :- विचारकर देख, गर्भ में से बालक जन्मने के लगभग तीन महीने बाकी रहते हैं, उसके पहले ही उस जन्म-धारण करनेवाले बालक की माँ के स्तनों में दूध उत्पन्न हो जाता है, जिससे बालक जन्म लेते ही उसका पोषण करने के लिये तैयार रखे गए उपायों का उपभोग कर सके।
7060
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)