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अनुदान पाने के लालच में तीर्थक्षेत्र कमेटी में बदलाव आया। एक शताब्दी पूर्व के पुरातत्त्वविदों, सात-आठ दशाब्दि पूर्व के जैन-जनेतर इतिहासकारों एवं खोजकर्ताओं को यह स्वप्न में भी नहीं आया होगा कि वर्ष 2001-2002 में केन्द्रीय शासन से अनुदान मिलेगा। स्वयं गणिनीप्रमुख को एक वर्ष पूर्व इसकी कल्पना नहीं थी, फिर ऐसा आरोप लगाना संकीर्ण मानसिकता का ही सूचक है। वस्तुस्थिति तो यह है कि कुण्डलपुर-नालंदा को अनुदान न मिलने के कारण जैनदीक्षाधारी माताजी ने अपने पद की मर्यादा के प्रतिकूल एक नया प्रकरण पैदा कर विद्वानों और समाज को विभक्त कर दिया। इस सम्बन्ध में तीर्थक्षेत्र कमेटी के सम्मानीय अध्यक्ष साहू रमेशचन्द्र जैन का आलेख 'भगवान् महावीर की जन्मस्थली कुंडपुर' - (प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर '02, पृष्ठ 28) अवलोकनीय है। __प्राचार्यश्री ! आप 'शास्त्री-परिषद्' के अध्यक्ष हैं। कृपया इस बिन्दु पर प्रकाश डालें कि क्या अ.भा.दि. जैन शास्त्री परिषद् की कार्यकारिणी की दिल्ली में दिनांक 11.2.02 को बैठक सम्पन्न हुई थी और क्या उसमें कुण्डलपुर-नालंदा के समर्थन में प्रस्ताव पारित हुआ था, जैसाकि आर्यिका चन्दनामती जी के ट्रेक्ट पृष्ठ 6 एवं ऋषभदेव-जैन-विद्वत्महासंघ' की पुस्तक 'भगवान् महावीर.....मनीषियों की दृष्टि में' के आवरण-पृष्ठ पर प्रकाशित किया है। कृपया 'प्राकृतविद्या' उक्त अंक के पृष्ठ 68 का अवलोकन करें। यह कौन-सी सद्भावना, नैतिकता एवं प्रामाणिकता के क्षेत्र में आता है। सामान्य-आचार में यह जघन्य अपराध है, जो जन-भ्रम-हेतु धार्मिक क्षेत्र में निर्भीकता से किया जा रहा है। प्राचार्यश्री से अनुरोध है कि वे सत्य-तथ्य को अनावृत करें और असत्य का सहारा लेने वालों की निंदा करें। ___ अंत में, यह 'हुंडावसर्पणी काल' है। वैशाली कुण्डपुर का अंत अजातशत्रु ने महावीर के जीवनकाल में ही कर दिया था; अत: उस पुण्य-क्षेत्र के नाम की दुहाई देकर जनता को कुमार्ग अपना कर भ्रमित नहीं करना चाहिये। सच्चाई, सच्चे-मन से स्वीकारना चाहिए, इसी में सभी का हित है। हठ का धर्म-क्षेत्र में कोई स्थान नहीं होता।
डॉ. अभय प्रकाश जी :- आपने अपने मामा श्री कामता प्रसाद जी के कर्तृत्व को महिमामंडित कर उचित ही किया था। दुर्भाग्य, उसी लेखनी से उनके कर्तृत्व को उसीतरह जमींदोज कर दिया, जैसा अजातशत्रु ने अपने नाना-मौसा का राज्य किया था। घर में आग घर के दिए से ही लगती है— अभिप्राय की भिन्नता से। वे स्वीकारते हैं कि कुण्डलपुर का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। उन्हें स्मरण होना चाहिये बासोकुण्ड में दो बीघा जमीन 'अहल्ल' (बिना जुती) सदियों से पूज्य मानकर छोड़ी है- पूज्य है और अजैन-भाईयों ने नि:शुल्क समाज को समर्पित की है।
नालंदा के निकट बड़ागांव का जैनमंदिर मार्ग में होने से सभी जन सहज धर्म-श्रद्धा
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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