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पं. जुगल किशोर जी मुख्तार, डॉ. ज्योतिप्रसाद जी, डॉ. ए.एन. उपाध्ये, डॉ. हीरालाल जी जैसे अनेक समर्पित जैन-मनीषियों एवं श्रमणों द्वारा सन् 1929 से की जा रही थी और वह भी दिगम्बर-जैन-आगम के संदर्भो के परिप्रेक्ष्य में। इन सबकी महती श्रम-साधना और कर्तृत्व को हल्के-फुल्के अनुत्तरदायी-शब्दों से नकारा नहीं जा सकता। उनकी खोज में आजादी के बाद की माननेवाले अपनी बदनीयत को व्यक्त करते हैं। यदि पूर्वविद्वानों पर आक्षेप लगाने का क्रम चलता रहा, तो आनेवाले समय में हम भी प्रश्नचिह्नित हो जाएंगे। परम्परा नष्ट हो जाएगी। ____ माननीय प्राचार्य जी एक ही श्वास में दो परस्पर-विरोधी बात एक साथ कर रहे हैं। एक ओर, वे दिगम्बर के अलावा जैनेतर-साहित्य को प्रमाण नहीं बनाना चाहते और उससे उत्पन्न अनेकों विसंगतियों से सावधान करते हैं, तो दूसरी ओर वे उसी क्रम में श्वेताम्बर ग्रन्थ 'भगवतीसूत्र' के कथन को प्रमाण मानकर कहते हैं “वैशाली और नालन्दा दोनों ही स्थानों के समीप कोल्लाग सन्निवेश' और दो-दो 'कुण्डग्राम' थे। इस उल्लेख के आधार पर कुण्डलपुर-नालंदा को जन्मभूमि मानने में कोई अड़चन शेष नहीं रहती" (संदर्भ- निर्मल ध्यान-ज्योति', अक्तूबर 02, पृ.9)। स्पष्ट है कि जो नहीं है उसे हम उसी 'भगवतीसूत्र' के आधार पर सिद्धकर देना चाहते हैं, जिसमें भगवान् महावीर को मांसाहारी होना भी स्वीकारते हैं। दूसरे, श्वेताम्बर-आगम नालंदा को स्पष्ट रूप से राजगह का एक पाड़ा मानता है ('वर्धमान जीवन कोश', पृष्ठ 324) जहाँ महावीर ने दूसरा चातुर्मास किया, क्या हम इसे स्वीकारने को तैयार हैं? ऐसा होने पर सारा विवाद ही स्वत: सुलझ जाएगा। महावीर ने राजगृह-नालंदा से ही कोल्लाक ग्राम' विहार किया था। तीसरे, श्वेताम्बर-आगम के अनुसार महावीर 'मिथिला' नगर से विहारकर वैशाली-विशाला' नगरी पधारे, जहाँ उन्होंने ग्यारहवाँ चार्तुमास किया और 'सुकुमारपुर' विहार किया (आवश्यक नियुक्ति गाथा 517)। इसके पहले भी महावीर सिद्धार्थपुर से वैशाली पधारे थे और वहाँ से मार्ग में गण्डकी नदी नाव से पारकर 'वाणिज्यग्राम' पधारे। इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि वैशाली नगरी मिथिला एवं वाणिज्यग्राम आदि के बीच कहीं स्थित थी, न कि सिन्धुदेश में; जैसा कि अपरपक्ष का कथन है। क्या अपरपक्ष श्वेताम्बर-आगम के प्रकाश में वैशाली की स्थिति उक्तानुसार स्वीकार करने को तत्पर है - (वर्धमान कथा कोश, पृष्ठ 310, 314 एवं 328)।
'भगवतीसूत्र' में कुण्डग्राम का उल्लेख है। प्रज्ञाश्रमणी जी को महावीर के सम्बन्ध में ग्राम शब्द इष्ट नहीं है। फिर यहाँ कुण्डलपुर शब्द न होकर कुण्डग्राम लिखा है। कुण्डग्राम से कुण्डलपुर कैसे हुआ। क्या दोनों समानार्थी है, फिर 'विदेह' का क्या हुआ। क्या विदेह नालंदा बन गया। हमें ज्ञात ही नहीं कि हम अपने आधार को स्वयं ही ध्वस्त कर दूसरों को बचाव की शिक्षा दे रहे हैं।
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
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