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मूल्यहीन सिद्ध करने का प्रयास किया। प्रथम तो, उनके इस चिंतन से वस्तुस्थिति में कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरे, जैन-संस्कृति को गणिनी जी की यह नई देन है। जैन-परम्परा में गृहत्यागी जिन-दीक्षाधारी की कोई स्थायी कर्मभूमि नहीं होती। उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने हस्तिनापुर को स्थायी कर्मभूमि बनाया। उनका अनुकरण कर जिनेश्वरी दीक्षाधारी अन्य महानुभावों ने भी अपनी-अपनी कर्मभूमियाँ गढ़ने-हेतु अध:कर्म-प्रवृत्ति रूप कार्य किया, जो जिनशासन को विनाश की ओर ले जानेवाला है। गम्भीर विवेकीजन विचारकर इस विकृति को रोकें, अन्यथा गढ़वादी प्रवृत्ति के जो परिणाम पहले बौद्धधर्म के साथ हुए उसकी पुनरावृत्ति जैनधर्म के साथ होना अवश्यंभावी है। ___समग्ररूप से प्रज्ञाश्रमणी जी के नालंदा-कुण्डलपुर के पक्ष में दिये गये तर्क सद्भावना के परे एकपक्षीय-पूर्वाग्रह पूर्ण प्रतीत होते हैं, पुनर्विचार अपेक्षित है।
श्री प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी :- ज्ञानवृद्ध, वयोवृद्ध प्राचार्य जी की विचारणा के प्रतिकूल कुछ भी लिखना दु:साहस होगा। वे और उनकी भाषा मोहक है, फिर भी अभिप्रायजन्य विरोधाभास वे चाहकर भी दूर नहीं कर सके। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हैं, कि वे कुछ कर भी नहीं सकते। आईये, अब उनके दृष्टिकोण पर विचार करें
जब कोई वस्तु खो जाती है, तभी उसकी खोज होती है। खोज कौन करे? —यह तो खोजकर्ता की रुचि और उसके साधनों पर निर्भर करता है। खोजकर्ता देशी-विदेशी, शासन-अशासकीय संस्थाएँ, व्यक्ति आदि कोई भी हो सकता है। सही खोज वही कर सकता है, जो निष्पक्ष, आग्रहहीन, अहंकारविहीन और मानसिकरूप से ईमानदार हो। बिना प्रमाण के किसी शोधकर्ता के विरुद्ध कुछ भी कहना अपनी हीन-मनोवृत्ति का परिचय देना है। यह इतिहास की त्रासदी है कि वैशाली, कुण्डपुर, कूलग्राम एवं वज्जिसंघ के अन्य-राज्य आतातायियों और अपनों द्वारा ही अनेकों बार ध्वस्त होकर जमींदोज हो गये। वे इतिहास या आगम के विषय हैं, भूगोल के नहीं। इसीकारण सम्भाव्य-स्थानों पर उनकी खोज हुई। उनके स्थान पर नये नगर/नई बस्तियाँ बन गयीं। ऐसी स्थिति में इस तर्क का कोई मूल्य नहीं होता कि किस नाम से क्या नाम बना या बन सकता है। यहाँ प्रकरण पुराना नाम मिटाकर नया नाम लिखने का है। खोज का विषय यह है कि कौन सा नया नाम किस पुराने नाम या स्थल का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसी दृष्टि से पुरातत्त्वीय प्रमाण, आगम-साहित्य एवं इतिहास की घटनाओं के आलोक में 'बासोकुण्ड' को 'कुण्डपुर' चिन्हित किया गया और बसाड़' को वैशाली' । खोज में क्या भूल या चूक हुई और कैसे गलत-निष्कर्ष निकाले गये, सप्रमाण यह सिद्ध करना चाहिये, जो नहीं किया गया। बिना कभी बताए नई खोज को गलत सिद्ध कैसे करें । कुण्डपुर (बासोकुण्ड) की खोज 'अ.भा. दिगम्बर जैन परिषद्' के तत्त्वावधान में सर्वश्री डॉ. कामताप्रसाद जी,
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)