SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्प्रदाय का धर्म नहीं है; बल्कि यह अन्तर्राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय धर्म है । जैन तीर्थंकरों की महान् आत्माओं ने संसार के राज्यों के जीतने की चिन्ता नहीं की थी, राज्यों को जीतना कुछ ज्यादा कठिन नहीं है, जैन तीर्थकरों का ध्येय राज्य जीतने का नहीं है; बल्कि स्वयं पर विजय प्राप्त करने का है। यही एक महान् ध्येय है, और मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है। लड़ाइयों से कुछ देर के लिये शत्रु दब जाता है, दुश्मनी का नाश नहीं होता। हिंसक युद्धों से संसार का कल्याण नहीं होता । यदि आज किसी ने महान् परिवर्तन करके दिखाया है, तो वह अहिंसा - सिद्धान्त ही है । अहिंसा - सिद्धान्त की खोज और प्राप्ति संसार के समस्त खोजों और प्राप्तियों से महान् है । यह (Law of Gravitation) मनुष्य का स्वभाव है नीचे की ओर जाना । परन्तु जैन - तीर्थंकरों ने सर्वप्रथम यह बताया कि अहिंसा का सिद्धान्त मनुष्य को ऊपर उठाता है। आज के संसार में सबका यही मत है कि अहिंसा - सिद्धान्त का महात्मा बुद्ध ने आज से 2500 वर्ष पहले प्रचार किया। किसी इतिहास के जानने वाले को इस बात का बिल्कुल ज्ञान नहीं है कि महात्मा बुद्ध से करोड़ों वर्ष पहले एक नहीं बल्कि अनेक जैन-तीर्थंकरों ने इस अहिंसा - सिद्धान्त का प्रचार किया है। जैनधर्म बुद्धधर्म से करोड़ों वर्ष पहिले का है। मैंने प्राचीन जैन क्षेत्रों और शिलालेखों के सलाइड्ज तैयार करके इस बात को प्रमाणित करने का यत्न किया है कि जैनधर्म प्राचीन धर्म है, जिसने भारत- संस्कृति को बहुत कुछ दिया; परन्तु अभी तक संसार की दृष्टि में जैनधर्म को महत्त्व नहीं दिया गया। उनके विचारों में यह केवल बीस लाख आदमियों का एक छोटा-सा धर्म है। हालाँकि जैनधर्म एक विशाल धर्म है और अहिंसा पर तो जैनियों को पूर्ण अधिकार प्राप्त है । - डॉ. श्री कालीदास नाग वाइस चांसलर कलकत्ता यूनिवर्सिटी जार्ज बर्नाडशा की जैनी होने की इच्छा : जैनधर्म के सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय हैं। मेरी आकांक्षा है कि मृत्यु के पश्चात् मैं जैन परिवार में जन्म धारण करूँ — जार्ज बर्नाडशा 1 • जैनधर्म इतिहास का खजाना : जैनधर्म के प्राचीन स्मारकों से भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास की बहुत ज़रूरी और उत्तम - सामग्री प्राप्त होती है। जैनधर्म प्राचीन सामग्री — डॉ. जे.जी. बुल्हर का भरपूर खजाना है 1 © जैनधर्म गुणों का भंडार : जैनधर्म अनन्तानन्त गुणों का भंडार है, जिसमें बहुत उच्चकोटि का तत्त्व-फिलॉस्फी भरा हुआ है । ऐतिहासिक, धार्मिक और साहित्यिक तथा भारत के प्राचीन कथन जानने की इच्छा रखनेवाले विद्वानों के लिए जैनधर्म का स्वाध्याय बहुत लाभदायक है । - प्रो. (डॉ.) मैक्समूलर प्राकृतविद्या + जनवरी - जून 2003 (संयुक्तांक ) 00 47
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy