SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म और भगवान् महावीर के बारे में महापुरुषों के उद्गार - प्रस्तुति : डॉ. सुदीप जैन ० ब्राह्मण-धर्म पर जैनधर्म की छाप : जैनधर्म अनादि है। गौतम बुद्ध महावीर स्वामी के शिष्य थे। चौबीस तीर्थंकरों में महावीर अन्तिम तीर्थंकर थे। यह जैनधर्म को पुन: प्रकाश में लाये, अहिंसाधर्म व्यापक हुआ। इनसे भी जैनधर्म की प्राचीनता मानी जाती है। पूर्वकाल में यज्ञ के लिये असंख्य पशु-हिंसा होती थी, इसके प्रमाण 'मेघदूत' काव्य तथा और ग्रन्थों से मिलते हैं। रन्तिदेव नामक राजा ने यज्ञ किया था, उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआ था कि नदी का जल खून से रक्त-वर्ण का हो गया था। उसी समय से उस नदी का नाम 'चर्मवती' प्रसिद्ध है। पशुवध से स्वर्ग मिलता है – इस विषय में उक्त कथा साक्षी है, परन्तु इस घोर हिंसा का ब्राह्मण-धर्म से विदाई ले जाने का श्रेय जैनधर्म को है। इस रीति से ब्राह्मण-धर्म अथवा हिन्दू-धर्म को जैनधर्म ने अहिंसा धर्म बनाया है। यज्ञ-यागादि कर्म केवल ब्राह्मण ही करते थे, क्षत्रिय और वैश्यों को यह अधिकार नहीं था और शूद्र बेचारे तो ऐसे बहुत विषयों में अभागे बनते थे। इसप्रकार मुक्ति प्राप्त करने की चारों वर्गों में एक-सी छूट न थी। जैनधर्म ने इस त्रुटि को भी पूर्ण किया है। मुसलमानों का शक, इसाईयों का शक, विक्रम शक, इसीप्रकार जैनधर्म में महावीर स्वामी का शक (सन्) चलता है। शक चलाने की कल्पना जैनी भाईयों ने ही उठाई थी। आजकल यज्ञों में पशुहिंसा नहीं होती। ब्राह्मण और हिन्दूधर्म में मांस-भक्षण, और मदिरा-पान बन्द हो गया, सो यह भी जैनधर्म का ही प्रताप है। जैनधर्म की छाप ब्राह्मण-धर्म पर पड़ी। -लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक . ० अहिंसा के अवतार भगवान् महावीर : “मेरा विश्वास है कि बिना धर्म का जीवन बिना सिद्धान्त का जीवन है और बिना सिद्धान्त का जीवन वैसा ही है, जैसा कि बिना पतवार का जहाज। जहाँ धर्म नहीं वहाँ विद्या नहीं, और नीरोगता भी नहीं। सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं और 'अहिंसा परमोधर्म:' से बढ़कर कोई आचार नहीं है। जिस धर्म में जितनी ही कम हिंसा है, समझना चाहिये कि उस धर्म में उतना प्राकृतविद्या+जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0043
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy