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________________ कितने आत्मीयपूर्ण और सरस थे ये संबोधन । शांतिनिकेतन में जाति, संप्रदाय, क्षेत्र और भाषागत-विभेद का किंचित् मात्र भी अहसास नहीं होता था और न वहाँ अमीर-गरीब या सामन्त-साधारणजन के बीच ही कोई फर्क किया जाता था। सब एक ही परिवार के सदस्यों की भाँति रहते, खाते और साथ घूमते थे। _ अफ्रीका के लौटने पर गांधी जी काफी समय तक शांतिनिकेतन में रहे थे। वे चाहते थे कि आश्रमवासी अपना सब काम अपने हाथ से करें, किन्तु गुरुदेव गांधीजी के इस विचार से सहमत नहीं थे। फिर भी आश्रम में गांधी जी के प्रवास को चिरस्मरणीय बनाने के लिए हर पूर्णिमा को आश्रम की सफाई, झाड़-पोंछ आदि सब काम अध्यापक व छात्र स्वयं करते थे। उस दिन हरिजन व अन्य कर्मचारियों का अवकाश रहता था तथा वे हमारे अतिथि के रूप में भोजनशाला में हमारे साथ बैठकर भोजन करते थे। शांतिनिकेतन पहुँचने पर बुधवार को साप्ताहिक प्रवचन के अवसर पर गुरुदेव के पहली बार दर्शन हुए। प्रथमदृष्टि-प्रेम की भाँति प्रथमदृष्टि-श्रद्धाभावना से मुग्ध हो गया। उनका गौर-वर्ण, दरवेशों जैसा लम्बा चोंगा, शुभ्र-श्वेत-जटा व लहराती दाढ़ीवाला सौम्य और आकर्षक व्यक्तित्व तथा मधुर, किन्तु बुलंद-आवाज चुंबक की भाँति अपनी ओर खींच लेते थे। कोई यह न भी बताता कि वे गुरुदेव हैं, तब भी उस ऋषि की भव्य छवि निहारकर श्रद्धानत होना स्वाभाविक था। तब साप्ताहिक प्रवचन, गुरुदेव के निवास पर सांध्यकालीन साहित्य-चर्चा और नाट्य एवं संगीत के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से उनका निकट-सान्निध्य निरंतर उपलब्ध होता रहा। गुरुदेव चेहरे से बहुत गंभीर लगते थे, पर थे बड़े विनोदी स्वभाव के। उनके हृदय-स्पर्शी मधुर-व्यंग्य लोगों को हंसी के मारे लोट-पोट कर देते थे। अत्यधिक परिश्रम के कारण अस्वस्थ रहने पर गांधीजी ने उनसे कसम ले ली थी कि रोजाना दोपहर में भोजन के बाद एक घंटा सोया करेंगे। उन्हें दोपहर में सोने की आदत नहीं थी, फिर भी कमरे का दरवाजा बंद करके बैठ जाते थे। एक दिन एक साहब उनसे मिलने आये और पूछा कि “वे क्या कर रहे थे", तो गुरुदेव का जवाब था कि “गांधीजी का कर्जा चुका रहा था।" एक घटना और याद आ रही है, शांतिनिकेतन से विदा होने से पूर्व गुरुदेव के साथ हम कुछ मित्रों का ग्रुप-फोटो खिंचवाना तय हुआ, फोटोग्राफर ने फोकस-एडजस्ट करने में असहनीय समय ले लिया। हम स्वयं तो ऊब ही रहे थे, हमें यह डर भी था कि गुरुदेव नाराज होकर चले न जायें, पर बलिहारी गुरुदेव की कि उन्होंने 'अरे जानते नहीं ये शाही फोटोग्राफर हैं, आधे घंटे से पहले फोटो खींच लें, तो इनकी साख को बट्टा न लग जाये?' जैसे व्यंग्य-बाण चलाकर हंसते-हंसाते आधे घंटे से भी अधिक समय निकाल दिया। प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00 41
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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