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________________ प्रतिबिम्बित चन्द्रबिम्ब का दृष्टान्त देकर इसप्रकार स्पष्ट करते हैं'बालं विहाय जलसंस्थितमिंदुबिम्बमन्य: क इच्छति जन: सहसा गृहीतुम्।' -(भक्तामरस्तोत्र, 3) अर्थ :- जल में स्थित चन्द्र-प्रतिबिंब को तत्काल ग्रहण करने के लिए अज्ञ बालक को छोड़कर कौन बुद्धिमान इच्छा करता है? अर्थात् कोई भी नहीं। . जैन-परम्परा में जो अष्ट-मंगल कहे गए हैं, उनमें भी निर्मल-दर्पण एक मंगलद्रव्य माना गया है—“भिंगार-कलस-दप्पण-चामर-धय-वियण-छत्त-सुपयट्ठा। . अठुत्तरसमसंखा पत्तेकं मंगला तेसु ।। -(तिलोयपण्णत्ती, 4/1880) . अर्थ :- (जिनेन्द्र प्रतिमाओं के पास) भंगार, कलश, दर्पण, चँवर, ध्वजा, बीजना, छत्र और सप्रतिष्ठ-ये आठ मंगलद्रव्य होते हैं। इनमें से प्रत्येक 108 की संख्या में वहाँ होते हैं। ___'दर्पण' या 'आदर्श' को मंगलद्रव्य तो कहा गया, किंतु निमित्तशास्त्रों में दर्पण में प्रतिबिम्बित छाया के रूपों से भी शुभाशुभ-फलों का विवेचन किया गया है। आचार्य वाग्भट्ट 'प्रतिच्छाया' का स्वरूप-निरूपण करते हुए लिखते हैं“आतपादर्शतोयादौ या संस्थानप्रमाणत:।" -(अष्टांगहृदय, 5/42) · अर्थ :- धूप, दर्पण और जल आदि में शरीर के आकार आदि के अनुरूप जो छाया होती है, उसे 'प्रतिच्छाया' कहते हैं। इसके शुभाशुभ की सूचना आचार्यों ने इसप्रकार दी है 'नाच्छायो नाप्रभ: काश्चद्विशेषाश्चिह्नयन्ति तु। नृणां शुभाशुभोत्पत्तिं काले छायाप्रभश्रिया: ।।' -(चरक, इन्द्रय, 7-17) अर्थ :- कोई भी पुरुष छाया और प्रभा से रहित नहीं होता। मनुष्य की विशेषताओं को छाया और प्रभा ही स्पष्ट रूप से प्रकट करती है। समय पर छाया और प्रभा के आश्रित भेद शुभ और अशुभ की उत्पत्ति के सूचक भी होते हैं। 'आदर्शलोकनं प्रोक्तं, मांगल्यं कांतिकारकं । पौष्टिकं बलमायुष्यं, पापालक्ष्मीविनाशनं ।।' -(सार्थरत्नाकर, नित्य. 44, पृ. 90) अर्थ :- आदर्श (दर्पण) को देखने से मंगल की प्राप्ति होती है। दर्पण कांतिकारक है, पुष्टिकारक है, बलदायक है, आयु-वृद्धि करनेवाला है, और पाप का विनाशक करके लक्ष्मी का निवासस्थानवाला है। 038 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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