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________________ शब्दश: पढ़ना ही होगा, जिनमें इस देश के नाम के बारे में एक ही बात बार-बार लिखी है। अपने देश के नाम का मामला है न? तो सही बात पता भी तो रहनी चाहिए। __ 'भागवत पुराण' कहता है कि (स्कन्ध-5, अध्याय-4) भगवान् ऋषभ को अपनी कर्मभूमि 'अजनाभवर्ष' में 100 पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र महायोगी 'भरत' को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोग इसे 'भारतवर्ष' कहने लगे—येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण आसीद्, येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति । दो अध्याय बाद इसी बात को फिर से दोहराया गया है। विष्णु पुराण' (अंश 2, अध्याय 1) कहता है कि जब ऋषभदेव ने नग्न होकर वन प्रस्थान किया, तो अपने ज्येष्ठ-पुत्र भरत को उत्तराधिकार दिया जिससे इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ गया—ऋषभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठ: पुत्रशतस्य स: (श्लोक 28), अभिषिच्य सुतं वीरं भरतं पृथिवीपति: (29), नग्नो वीटां मुखे कृत्वा वीराध्वानं ततो गत: (31), ततश्च भारतं वर्षम् एतद् लोकेषु गीयते (32)।। ___ ठीक इसी बात को 47-21-24 में दूसरे शब्दों में दोहराया गया है— सोऽभिचिन्त्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः । ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय-महोरगान् । हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भरतस्य न्यवेदयत् । तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः । यानी (संक्षेप में) इन्द्रियरूपी साँपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया, तो इस देश का नाम तब से 'भारतवर्ष' पड़ गया। इसी बात को प्रकारान्तर से 'वायु पुराण' और 'ब्रह्माण्ड पुराण' में भी कहा गया है। ___ अब बताइए कि जो विदेशी लोग, जो हमारे अपने सगे उनके मानसपुत्र किन्हीं आर्यों . को कहीं बाहर से आया मानते हैं, फिर यहाँ आकर द्रविड़ों से उनकी लड़ाइयाँ बताते हैं, उन्हें और क्या बताएँ और क्यों बताएँ? क्यों न उन लोगों के लिए कोशिश करें, जो जानना चाहते हैं और जिनके इरादे नेक हैं। पर सवाल यह कि ऋषभ-पुत्र भरत में ऐसी खास बात क्या थी उनके नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ गया? भरत के विशिष्ट-चरित्र का वर्णन करने के लिए इस देश के पुराण-साहित्य में उनके तीन जन्मों का वर्णन है और प्रत्येक जन्म में दो बातें समानरूप से रहीं। एक, भरत को अपने पूर्वजन्म का पूरा ज्ञान रहा और दो, हर अगले जन्म में वे पूर्व की अपेक्षा ज्ञान और वैराग्य की ओर ज्यादा से ज्यादा बढ़ते चले गए। तीन जन्मोंवाली बात पढ़कर तार्किक दिमाग की इच्छा होती होगी कि ऐसी कल्पनाएँ भी भला क्यों गढ़नी पड़ीं? बेशक कुछ लोग कहना चाहेंगे कि कई बार तर्क का रास्ता ऐसे अतार्किक बीहड़ में से भी निकल आता है। पर इस संबंध में जैन-परम्परा तर्क के नजदीक ज्यादा नजर आती है, जहाँ उनको एक ही जन्म में परम दार्शनिक अवधूत के रूप में चित्रित किया गया है। भरत अपने पिता की ही तरह दार्शनिक राजा थे। बल्कि प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00 13
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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