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"श्रेयांसि बहुविघ्नानि "
“विघ्नैः मुहुर्मुहुरपि, प्रतिहन्यमानाः । प्रारब्धमुत्तमजनाः न परित्यजन्ति । । ” – (भर्तृहरिः ) जीवन के किसी भी क्षेत्र में अन्तिम पवित्र ध्येय तक पहुँचने से पहिले अनेकों विघ्न (श्रेयांसि बहुविघ्नानि ) बाधाओं को पार करना पड़ता है। जो दृढ़ निश्चयी नहीं होते, जिनका सुसंकल्प अस्थिर होता है, वे तो कुछ विघ्नों का सामना होते ही हिम्मत हार जाते हैं। अन्य लोग पथभ्रष्ट भी हो जाते हैं। परन्तु सफल वही होता है, जो उपर्युक्त शब्दों के अनुसार विघ्नों से बार-बार प्रताड़ित होने पर भी उत्तम पुरुष पथ से तनिक भी नहीं डिगता ।
'निमित्त शास्त्र के वेत्ताओं का मत है कि जिस व्यक्ति के जीवन पर एक से अधिक बार प्रामाणिक संकट आपत्ति और विपत्ति उपस्थित हुए हों, जिनसे उसकी रक्षा प्रकृति ने की हो, वह व्यक्ति संचमुच में लोकोत्तर महापुरुष होता है। उसके द्वारा विश्व में असंख्यात प्राणियों का कल्याण होता है । उसका जीवन केवल उसके लिए ही नहीं, लोक के लिए भी है । '
- आचार्य विद्यानंद
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