SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - प्रस्तावक : प्रो. सुदर्शनलाल जैन, वाराणसी (उ.प्र.) । - अनुमोदक : प्रो. डॉ. एस. पी. पाटिल, धारवाड़ । आचार्य जिनेन्द्रकुमार जैन, सासनी । डॉ. गंगाराम गर्ग, भरतपुर। पं. विमलकुमार जैन, सोंरय, टीकमगढ़। प्रा. कुन्दनलाल जैन, दिल्ली। डॉ. सुपार्श्वकुमार जैन, बड़ौत। अनूपचंद जैन एडवोकेट, फिरोजाबाद ** मैसूर विश्वविद्यालय एवं श्रवणबेलगोला के प्राकृत संस्थान में विशेष व्याख्यान दिनांक 6 एवं 7 फरवरी, 2003 को कुन्दकुन्द भारती के उपनिदेशक एवं प्राकृतविद्या के संपादक डॉ. सुदीप जैन मैसूर एवं श्रवणबेलगोला में वहाँ के संस्थानों के विशेष निमंत्रण पर पधारे, तथा दिनांक 6 फरवरी को मैसूर विश्वविद्यालय के 'जैनविद्या एवं प्राकृत' विभाग में उनका 'वर्तमान संदर्भों में प्राकृतभाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता एवं उपयोगिता' विषय पर अत्यंत सारगर्भित व्याख्यान हुआ, जिसमें उन्होंने राजधानी नई दिल्ली में कुन्दकुन्द भारती की प्रेरणा से प्राकृतभाषा और साहित्य के क्षेत्र में संचालित गतिविधियों का प्रभावी परिचय देते हुए देशभर में प्राकृतभाषा और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन के लिए स्वतंत्र-विभाग निर्माण किए जाने की परियोजना पर दिशा-निर्देश प्रस्तुत किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि "सरकार से पहिले आर्थिक संसाधन की मांग किए बिना यह आवश्यक है कि हम प्राकृतभाषा और साहित्य के प्रति लोगों में आकर्षण उत्पन्न करें, तथा बड़ी संख्या में इसके पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं अन्य शैक्षणिक संस्थाओं में संचालित कर सरकार को इनकी अनिवार्यता का बोध कराए और फिर इनके स्वतंत्र विभाग खोलने के लिए पुरजोर प्रयत्न करें। " दिनांक 7 फरवरी, '03 को श्रवणबेलगोला के 'राष्ट्रीय - प्राकृत अध्ययन संस्थान' में शोधछात्रों एवं जिज्ञासुओं के बीच उनका विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें उन्होंने प्राकृतभाषा और साहित्य के क्षेत्र में शोध की अपार संभावनाओं, विषयों एवं परियोजनाओं के बारे में केन्द्र सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं से लिए जा सकने वाले सहयोगों का परिचय देते हुए राष्ट्रहित, समाजहित एवं साहित्य के हित में प्राकृतभाषा और साहित्य के क्षेत्र में बहुआयामी शोध के कार्यों को प्रोत्साहित करने का दिशाबोध दिया। श्रवणबेलगोला में भट्टारक श्री चारुकीर्ति स्वामी जी के साथ भी उनकी दो घंटे की गम्भीर-चर्चा हुई, जिसमें प्राचीन ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों के संरक्षण तथा प्राकृतभाषा और साहित्य के क्षेत्र में बहुआयामी कार्ययोजनाओं के निर्माण के विषय में व्यापक विचार-विमर्श हुआ । पूज्य स्वामीजी ने डॉ. सुदीप जैन को शॉल एवं श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया । इस सम्पूर्ण कार्यक्रम में 'राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन संस्थान' श्रवणबेलगोला के निदेशक डॉ. एन. सुरेश कुमार का अनन्य निरन्तर सहयोग रहा। तथा मैसूर विश्वविद्यालय के विद्या एवं प्राकृतविभाग की माननीया अध्यक्षा एवं विभाग के समस्त विद्वान् अध्यापकों ने भी महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया । - एन. सुरेश कुमार, श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) **** प्राकृतविद्या�जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक ) 98
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy