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________________ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में केवल नामभर को एक मकान एम.आई.जी. ग्रुप मेरे नाम पर लिया गया है। स्वामित्व के नाते मेरा उससे कोई संबंध नहीं है। . कुटुम्ब के लिए मेरा जीवन में जो योगदान रहा, उसको लेकर मुझे कुछ कहना नहीं है। सब कुटुम्बीजन जानते हैं। ___ रुपये 25,000/- का ब्याज दु:खी-दर्दियों के तथा पारमार्थिक कार्यों के लिए हैं। इसमें जातिभेद नहीं रहेगा। यह राशि घर के ही लोग कमेटी बनाकर खर्च करें। मुझे किसी का एक रुपया भी देना नहीं है। ____मैंने जीवन में अनीति या अपवित्र प्रकार से एक रुपया भी घर में नहीं आने दिया। सदा धर्म और जन्म-कुल तथा कांग्रेस-कुल की प्रतिष्ठा और शोभा का ध्यान रखा। यह मेरे लम्बे जीवन की कहानी है। मेरी मृत्यु के बाद मेरे नाम पर कोई सामाजिक क्रिया-काण्ड न किया जाये। राष्ट्रहित तथा समाजहित, सबसे स्नेह और ममता मेरे जीवन के संगीत रहे हैं, इसको गाता हुआ समताभाव से इस लोक से विदा होऊँयह मेरी भावना है। मेरा उपादान और ज्ञान इसमें सहायक हो, यही चाह है।' 4 सितम्बर, 1981 को इन्दौर में आपका निधन हो गया। तत्काल सभी सरकारी कार्यालय व बाजार बन्द हो गये। भोपाल समाचार पहुँचते ही सभी सरकारी कार्यालय बन्द कर 'दिये गये। 5 सितम्बर को भी इन्दौर के सभी सरकारी कार्यालय व बाजार बंद रहे। उसी दिन आपकी अन्त्येष्टि त्रिलोकचंद हाईस्कूल' में हुई। अन्त्येष्टि में भाग लेने उपमुख्यंत्री श्री शिवभान सिंह सोलंकी आदि शताधिक मंत्री/विधायक/नेता/अधिकारी उपस्थित थे। लगभग बीस हजार लोगों ने अपने प्रिय भैया' को उस दिन अंतिम विदाई दी। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्री बालकवि वैरागी ने कहा- वे जो कुछ थे आचरण में थे। कथनी और करनी में कोई विभेद इस व्यक्ति के जीवन में कभी नहीं आया... उनका कोई दुश्मन नहीं था, विरोध नहीं और आलोचक हजार थे।' श्री कन्हैयालाल खादीवाले ने कहा था- 'सक्रिय राजनीति में रहते हुए भी उनकी प्रकृति साधु के समान थी।... पं. नेहरू और श्रीमती इन्दिरा गांधी जब भी उनसे मिलते, भजन सुनाये बिना नहीं जाने देते। वे एक मितव्ययी मंत्री थे।' -(जैनमित्र साप्ताहिक', दिनांक 3.10.2002, पृ. 314-315) महावीर की जन्मस्थली तीर्थंकरों के जन्म से लेकर निर्वाण तक की घटनाओं का संबंध उत्तर भारत के अनेक ऐतिहासिक स्थलों के साथ माना जाता है। महावीर की जन्मस्थली 'वैशाली बिहार के मुजफ्फरपुर' जिले में स्थित है। -- (साभार उदधृत, मध्यप्रदेश की जैन विरासत', पुस्तिका. पृष्ठ 5).. प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 00 37
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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