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________________ बनाने की कोशिशें हुई। परन्तु कांग्रेस हाईकमान तैयार नहीं हुआ, फलत: गंगवाल जी ही मुख्यमंत्री बने। पुन: तख्तमल जी जब तीसरी बार चुनाव जीतकर आये, तो गंगवाल जी ने बिना, ‘ननु न च किये अपना त्यागपत्र दे दिया और कहा कि वे भरत की तरह विरक्त होकर राजकाज चला रहे थे, अब राम की अयोध्या वापसी पर तख्तमल जी के लिए सिंहासन खाली करने का सुख अनुभव कर रहे हैं। .. 1967 में उन्होंने 'बागली' से विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें वे पराजित हो गये। इस पराजय के बाद भैयाजी ने संसदीय राजनीति छोड़ दी। उन्होंने फिर विधानसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा, किन्तु राजनीति में जीवनपर्यंत बने रहे और कांग्रेस के अनेक युवा नेताओं का मार्गदर्शन किया। 1968-71 में वे 'मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी' के अध्यक्ष रहे। आर्थिक मसलों पर उनकी सूझबूझ और वित्त एवं योजना-विकास-मंत्री के रूप में उनके दीर्घकालीन-अनुभवों को मद्देनजर रखकर श्री प्रकाशचंद सेठी ने 1975 में गंगवाल जी को 'राज्य-योजना आयोग' का सदस्य मनोनीत किया था। व्यायाम और संगीत भैयाजी को विशेष-प्रिय थे। इतने ऊँचे पद पर आसीन होने के बाद भी वे सभाओं में भजन गाने में संकोच नहीं करते थे। उनके प्रिय-भजनों में उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ तू सोवत है', 'तुम प्रभु दीनदयाल मैं दुखिया संसारी', 'अब मेरे समकित सावन आयो रे' आदि थे। सन् 1971 में इन्दौर में आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के चातुर्मास-अवसर पर प्रतिदिन शास्त्रसभा में सुन्दर-सुन्दर भजन सुनाया करते थे। फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस में भी उनकी विशेष-दिलचस्पी थी। राजनीति के साथ सामाजिक व धार्मिक-जगत् के आप केन्द्र-बिन्दु रहे। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अंतरंग आत्मीयता, निश्छल स्नेह आपके गुण थे। सेवापरायणता और विनम्रता तो जैसे आपके रक्त में मिली थी। जो भी आपके सम्पर्क में एक बार आया, वह आपका होकर ही रह गया। शैक्षणिक और साहित्यिक गतिविधियों से गंगवाल साहब सदैव जुड़े रहे। गरीब विद्यार्थियों को विद्या-अध्ययन-हेतु सहायता करना उन्हें अत्यंत प्रिय था। इन्दौर के कितने ही विद्यालयों/पुस्तकालयों वे संस्थापक/अध्यक्ष/मंत्री आदि थे। . नामानुरूप ही मिश्री की मिठास जिह्वा तथा जीवन में उन्हें प्रिय थी। स्वादिष्ट भोजन और मिष्ठान्न उनके प्रिय थे। - गंगवाल साहब जीवनपर्यंत कट्टर-शाकाहारी रहे। उनकी दृढ़ता का एक उदाहरण द्रष्टव्य है। वे जब मध्यभारत के मुख्यमंत्री थे, तब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का भैया के पास एक पत्र आया था, जिसमें भारत आये युगोस्लाविया प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 00 35
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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