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आवरण पृष्ठ के विषय में
भारतीय परम्परा में हंस को विवेक और वैदुष्य का अप्रतिम - प्रतिमान माना गया है। कोशकारों ने 'हंस' शब्द को 'हस्' धातु से 'अच्' प्रत्यय करके 'पृषोदरादिगण' में वर्णागमपूर्वक निर्मित माना है; और इसके राजहंस, मराल, मुरगाबी, कारंडव, परमात्मा, ब्रह्म, आत्मा, जीवात्मा, एक प्राणवायु, सूर्य, शिव, विष्णु, कामदेव, महत्त्वाकांक्षा - रहित राजा, य - विशेष का सन्यासी, दीक्षा - गुरु, ईर्ष्या एवं द्वेष से रहित व्यक्ति एवं पर्वत आदि अर्थ किये हैं ।
सम्प्रदाय
'मृच्छिकटिक' – (5/6) नामक रूपक के कर्त्ता लिखते हैं- “हंसा: संप्रति पाण्डवा इव वनादज्ञातचर्यां गता: "; तथा महाकवि कालिदास ने लिखा है कि- “न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा” – (रघुवंश महाकाव्य, 3/10 ) । संस्कृत के कवियों ने इसे 'ब्रह्मा जी का वाहन' बताया है, तथा लिखा है कि- 'बारिश के प्रारम्भ में हंस उड़कर मानसरोवर की ओर जाते हैं।' अधिकांश भारतीय मनीषी हंस पक्षी को दूध का दूध और पानी का पानी पृथक् करनेवाली शक्ति- विशेष से सम्पन्न मानते हैं । यथा – “सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्” – (पंचतन्त्र, 1 ) । “नीर-क्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत् । ” – ( भामिनी विलास, 1/13 ) । आचार्य अमृतचन्द्रसूरि भी इस तथ्य का समर्थन करते हुए लिखते हैं
" जानाति हंस इव वाः पयसोर्विशेषं ।” - ( समयसार कलश, 59, पृ. 157) अर्थात् वह ज्ञातापुरुष हंस के दूध और पानी के विवेक के समान परपदार्थों से भिन्न चैतन्यधातु का अविचलरूप से आश्रय करता हुआ उसका ज्ञाता ही रहता है। आचार्य मल्लिषेण-विरचित 'वाग्देवी स्तोत्र' में सरस्वती को एकाधिक बार हंस वाहिनी के रूप में प्ररूपित किया गया है—
“कामार्थदे ! च कलहंस-समाधिरूढे ।.....
हंसस्कन्धसमारूढा वीणा पुस्तकधारिणी । .....
तृतीयं शारदादेवी चतुर्थं हंस - गामिनी । । ” – (वाग्देवी-स्तोत्रम् 1, 10-11) 'परमात्मप्रकाश' के टीकाकार भी 'हंस' शब्द को 'परमात्मा का वाचक' बताते हैं“अनन्तज्ञानादि-निर्मलगुणयोगेन हंस इव हंस परमात्मा ।” अर्थात् अनन्तज्ञानादि निर्मल-गुणों से सहित होने के कारण हंस के समान होने से परमात्मा को भी 'हंस' कहा गया है। - ( परमात्मप्रकाश, अध्याय 2, दोहा 170 की टीका) 'ज्ञानसार’-ग्रन्थ में शुक्लध्यानी आत्मा को 'हंस' कहा गया है— “निश्चिन्तस्तथा हंसः पुरुषः पुनः केवली भवति । ” – (पद्य 47 ) । इसके अतिरिक्त ब्रह्मेन्द्र ('ब्रह्म' स्वर्ग के स्वामी) का विमान भी 'हंसाकृति' माना गया है।
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली का प्रतीक चिह्न भी 'हंस' हैं । स्वनामधन्य मनीषी डॉ. मण्डन मिश्र जी ने जिस सारस्वतभाव से इस विद्यापीठ की स्थापना की थी, उसी के अनुरूप यह हंस का प्रतीक चिह्न उन्होंने चुना था ।
-सम्पादक