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________________ पुस्तक का नाम : यशोधरचरितम् मूल-लेखक : भट्टारक-सकलकीर्ति संपादक : डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' . प्रकाशक : सन्मति रिसर्च इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, सदर, नागपुर संस्करण : प्रथम 1988 ई., प्रतियाँ 1100 मूल्य : उपलब्ध नहीं, पक्की जिल्द, पृष्ठ लगभग 184 ___ जैनाचार्यों एवं मनीषियों ने प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं के साथ-साथ संस्कृतभाषा एवं विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य-सृजन करके न केवल जैनतत्त्वज्ञान, कथाओं एवं अन्य बहुआयामी ज्ञान-विज्ञान का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है; अपितु उन भाषाओं के साहित्य को भी समृद्ध किया है। 14वीं शताब्दी ई. के प्रसिद्ध विद्वान् भट्टारक सकलकीर्ति संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी —इन तीनों भाषाओं के अधिकारी विद्वान् थे, तथा आपने कुल अड़तीस रचनाएँ लिखी हैं, जिनमें से 30 रचनाएँ केवल संस्कृतभाषा में ही निबद्ध हैं। 'यशोधरचरितम्' उनकी एक संस्कृतभाषा निबद्ध महत्त्वपूर्ण रचना है। विभिन्न ग्रन्थ-भण्डारों में उपलब्ध इसकी पाण्डुलिपियों का तुलनात्मक पाठ-सम्पादन कर विद्वान् सम्पादक ने इसका प्रकाशन किया है। इसमें प्रारम्भ में ग्रंथ का कथासार लगभग अनुवाद-शैली में दिया गया है, तथा बाद में ग्रंथ का मूलपाठ सम्पादित करके प्रकाशित कराया है। ___ यह पुस्तक अपने स्तरीय प्रकाशन के लिये प्रशंसनीय, पठनीय एवं विचारणीय है। –सम्पादक ** प्राकृतभाषा गामे गामे णयरे णयरे, विलसदु पागदभासा। सदणे सदणे जण-जण-वदणे, जयदु चिरं जणभासा।। अर्थ :- यह प्राकृतभाषा ग्राम-ग्राम में और नगर-नगर में विलसित होती रहे। यह जनभाषा घर-घर में ही नहीं, अपितु जन-जन के मुख में भी चिरकाल तक जयवन्त रहे। आतंकवादी सस्सो य भरधगामस्स, सत्तसंवच्छराणि णिस्सेसो। दड्ढा डंभणदोसेण, कुम्भकारेण रूढेण ।। अर्थ :- मायाचार के दोष से रुष्ट हुए कुम्भकार ने 'भरत' नामक गांव का धान्य सात वर्ष तक पूर्ण रूप से जलाया था। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 0099
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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