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________________ Anmala, Kutirmala, Kutiraan, Kutiravattaam, Naagmala, Nagampatam etc. इसीप्रकार जैन साधुओं की स्मृति में निर्मित पाषाण - स्मारकों के कारण भी अनेक स्थल-नामों का विकास हुआ है। – (प्रस्तुत लेखक श्री वालथ का आभारी है) केरल गजेटियर ने पृ० 229 पर यह उल्लेख किया है कि जैन-साधु चैत्य या विहार में भी रहा करते थे और ऐसे स्थानों को 'कोट्टम' कहा जाता था। इस जानकारी के अभाव में कुछ विद्वान् इन शब्दों को देखते ही उन्हें 'बौद्ध' कह बैठे हैं। इसकी चर्चा 'मूषक - वंश' के प्रसंग में की गई है। डॉ० के०के० पिळ्ळै ने 'तमिलनाडु के विशेष संदर्भ में भारत का इतिहास' अंग्रेजी में लिखा है। उसका एक अध्याय केरल में जैनधर्म से भी संबंधित है। उसमें आठ बातें ऐसी गिनाई हैं, जिन पर जैन - प्रभाव संभव है। उनका संक्षिप्त उल्लेख यहाँ किया जाता है। अय्यप्पा केरल में अयप्पा की पूजन का बड़ा महत्त्व है । उसका श्रेय बौद्धों को दिया जाता है। एक लेखक की उद्धरण देकर डॉ० पिळ्ळै यह कहते हैं कि अयप्पा और शास्ता के रूप में पूजित देव वास्तव में जैनों का ब्रह्म-यक्ष है, जिसका वाहन गज है। प्रस्तुत लेखक ने भी 'सबरीमला' नामक अध्याय में यह बताया है कि " अय्यप्पा का संबंध बौद्ध परंपरा से नहीं, अपितु जैन-परंपरा से जान पड़ता है।” तिरुमेनी - अभिवादन केरल में परस्पर सम्मानपूर्ण अभिवादन के लिए प्रयुक्त 'तिरुमेनी' शब्द के संबंध में डॉ० पिळ्ळै ने एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी है, जो इसप्रकार है - "It is possible that the word 'Tirumeni' is derived from the Jain usage. In kalgumalai of Tirunelveli District, there are some Jain sculptures, the inscriptions below them end with the expression 'Tirumeni' which means 'the sacred image'. Tirumeni is a form of respectful addressvery common in the Malayalam country. It is not unlikely that this was adopted in Malyalam and Tamil from Jain practice." यह तथ्य भी तमिलनाडु और केरल में जैनधर्म के व्यापक एवं दीर्घस्थायी प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है । रत्नत्रय और मोक्षमार्ग इतिहासकार डॉ. पिळ्ळै ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि केरली संस्कृति में जैनों के योगदान का आकलन केवल मंदिरों से ही किया जाना उचित नहीं है। उन्होंने जैनधर्म के तीन रत्नों या रत्नत्रय एवं मोक्षमार्ग का उल्लेख करते हुए जैनधर्म की राग-द्वेष पर विजय, अहिंसा और अपरिग्रह की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। उनका मत है कि, "All theseprinciples were adopted in Kerala as well as the rest of the country" उन्हें इस बात पर भी आश्चर्य है कि केरल में कोई प्रमुख जैन - आचार्य नहीं हुआ । प्रस्तुत लेखक को भी इस पर आश्चर्य है । या तो जैन ग्रंथ नष्ट कर दिए गए या प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2001 OO 84
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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