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________________ केरली-संस्कृति में जैन-योगदान -राजमल जैन दक्षिण-भारत में जैन-संस्कृति के प्राचीन-प्रमाणों से प्राय: लोग परिचित नहीं हैं। वैसे तो अनेकोंजन जैन-प्रतिमाओं को किंचित् सादृश्य के कारण बौद्ध-प्रतिमाओं के रूप में घोषित कर देते हैं। जैनों का विगत डेढ-दो शताब्दियों में व्यापार-केन्द्रित-जीवन बन जाने से उनकी संस्कृति, साहित्य और पुरातत्त्व आदि के साथ जो अनुचित-व्यवहार हुआ है, वे या तो उससे अनभिज्ञ बने रहे और या फिर उन्होंने इस दिशा में कोई प्रतिकार करने की चेष्टा ही नहीं की। इस उपेक्षा के कारण लेखन एवं प्रसार माध्यमों में जैनत्व की घोर-उपेक्षा हुई है। नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक जीवन, भाषा-साहित्य एवं शिल्प आदि विविध क्षेत्रों में जो जैनधर्म एवं संस्कृति का प्राचीन केरल में प्रभाव रहा है, इसे भलीभाँति सप्रमाण रेखांकित करने का सार्थक प्रयास विद्वान् लेखक ने इस आलेख में किया है। जिज्ञासुओं एवं मनीषियों—सभी के लिए यह आलेख पठनीय एवं मननीय है। -सम्पादक एक जैन-लेखक के लिए उपर्युक्त विषय पर कलम चलाना शायद अपने मुँह मियां मिठू' बनने के समान लग सकता है; किन्तु जब यह सुनने को मिलता है कि केरल के जीवन पर जैनधर्म की कोई छाप नहीं है, तो अधिक कष्ट होता है कि प्राचीनकाल की सबल जैन-परम्परा को किसप्रकार शून्य कर दिया गया है? इसकारण यहाँ संक्षेप में इस योगदान की चर्चा की जायेगी। पक्षपात के दोष से बचने के लिए संबंधित-स्रोत या लेखक का नाम भी दे दिया गया है। प्राकृत : मलयालम और प्राचीन तमिल प्राचीनकाल में जैन-शास्त्रों की प्रियभाषा 'प्राकृत' ने 'मलयालम' को प्रभावित किया है। यही नहीं, मणिप्रवाल-भाषा-शैली तथा संस्कृत के प्रयोग में भी जैन अग्रणी रहे हैं। कुछ 'प्राकृत-शब्द' तो आज भी मलयालम' में प्रचलित हैं। केरल गजेटियर के खंड 2, पृ0 236 पर यह मत व्यक्त किया गया है, "The impact of the Jain terminology on Malayalam is detected by the presence of loan words from Jain Prakrits of Ardhamagadhi, Jain Maharastri and Jain Sauraseni. Achuthan (Accuda), Astamavam (Atthamava), Ambujam (ambuya), Ayan (Aya), Jagam (Jaga), Yogi (Jogi), Narayam (Naraya), Nivati (Nitval), Pankajam 1070 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 र'2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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