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पुराने साहित्य में पूरी शिद्दत से दर्ज है कि भारत नामक राष्ट्र का मतलब क्या होता है और क्यों होता है? और उन तमाम इतिहासकारों को भी जिन्हें पश्चिमी विद्वानों द्वारा पढ़ाए गए भारतीय इतिहास के आर-पार सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है, यह बताना है कि अपने देश का नाम-रूप जानने के लिए उन्हें अपने देश के भीतर ही झांकना होता है।
'महाभारत' का एक छोटा सा सन्दर्भ छोड़ दें, तो पूरी जैन - परम्परा और वैष्णव- परम्परा में बार-बार दर्ज है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर 'भारतवर्ष' पड़ा। 'महाभारत' (आदि पर्व 2-9) का कहना है कि इस देश का नाम भारतवर्ष उस भरत के नाम पर पड़ा, जो दुष्यन्त और शकुन्तला का पुत्र कुरुवंशी राजा था। पर इसके अतिरिक्त जिस भी पुराण में भारतवर्ष का विवरण है, वहाँ इसे ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है । 'वायुपुराण' कहता है कि इससे पहले भारतवर्ष का नाम हिमवर्ष था, जबकि 'भागवत पुराण' में इसका पुराना नाम 'अजनाभवर्ष' बताया गया है। हो सकता है कि दोनों हों और इसके अलावा भी कुछ नाम चलते और हटते रहे हों, तब तक जब तक कि 'भारतवर्ष' नाम पड़ा और क्रमश: सारे देश में स्वीकार्य होता चला गया। आप खुश हों या हाथ झाड़ने को तैयार हो जायें, पर आज पुराण-प्रसंगों को शब्दश: पढ़ना ही होगा। जिनमें इस देश के नाम बारे में एक ही बात बार-बार लिखी है । अपने देश के नाम का मामला है न? तो सही बात पता भी तो रहनी चाहिए ।
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'भागवत पुराण' (स्कन्ध 5, अध्याय 4 ) कहता है कि भगवान् ऋषभ को अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में 100 पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोग इसे भारतवर्ष कहने लगे – “येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति ।” दो अध्याय बाद इसी बात को फिर से दोहराया गया है ।
'विष्णुपुराण' (अंश 2, अध्याय 1 ) कहता है कि जब ऋषभदेव ने नग्न होकर वनप्रस्थान किया, तो अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को उत्तराधिकार दिया, जिससे इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ गया — ऋषभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य स: (श्लोक 28 ), अभिषिच्य सुतं वीरं भरतं पृथ्वीपति: ( 29 ), नग्नो वीरां मुखे कृत्वा वीराध्वानं ततो गत: (31), ततश्च भारतं वर्षम् एतद् लोकेषु गीयते ( 32 ) ।
'लिंगपुराण' देखा जाए। ठीक इसी बात को 47-21-24 में दूसरे शब्दों में दोहराया गया है—“सोऽभिचिन्त्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः । ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय महोरगान् । हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्षं भरतस्य न्यवेदयत् । तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः । ” यानी (संक्षेप में) इन्द्रियरूपी साँपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भारत को दिया, तो इस देश का नाम तब से 'भारतवर्ष' पड़ गया। इसी बात को
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प्राकृतविद्या�अक्तूबर-दिसम्बर '2001