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________________ दार्शनिक-राजा कीपरम्परा के प्रवर्तक तीर्थंकर ऋषभदेव ----डॉ० सूर्यकान्त बाली जैन-परम्परा के प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव एवं उनके ज्येष्ठपुत्र महायोगी भरत | चक्रवर्ती का नाम विश्वविश्रुत है। ऋषभदेव के पिता 'नाभिराय' के नाम पर इस देश का नाम 'अजनाभवर्ष' रहा तथा फिर चक्रवर्ती भरत के नाम पर इसका नाम 'भारतवर्ष' हुआ। चूँकि प्राचीन भारत में वैचारिक मतभेद होते हुए भी मनभेद एवं विचारकालुष्य की संस्कृति नहीं थी, अत: अपने से भिन्न मतवादियों का भी ससम्मान उल्लेख वे अपने ग्रंथों में करते थे। श्रमण-संस्कृति एवं वैदिक-संस्कृति की विचार-भित्ति भिन्न-भिन्न होते हुए भी वैदिक-परम्परा के ग्रंथों के प्राचीन संस्करणों में श्रमणसंस्कृति के महापुरुषों के यशोगान निष्पक्ष-भाव से मुखरित दिखाई देते रहे। आधुनिक प्रकाशकों में संभवत: वैसी वैचारिक उदारता नहीं बची, इसलिए उन्हीं ग्रंथों के अधुनातन-संस्करणों से वे उल्लेख गायब कर दिये गये हैं। भला ही डॉ० बाली जैसे प्राचीन-परम्परा के अध्येता लेखकों का, जिन्होंने अपने लेखों/रचनाओं में उन उल्लेखों को स्वयं वैदिक विद्वान् होते हुए भी निष्पक्ष-भाव से सुरक्षित रखा। उनकी एक कृति में से यह आलेख यहाँ विचारार्थ प्रस्तुत है। –सम्पादक आप नदी में नहाने के लिए निकलें और नदी पर घाट बना हो या नहीं, इससे कितना फर्क पड़ जाता है। घाट बना हो, तो आप आराम से नहा लेते हैं; और न बना हो, तो फिसल जाने के डर की गठरी सिर पर लादे आप जैसे- तैसे ही स्नान कर पाते हैं। घाट न बना हो, तो आप चाहते हैं कि काश ! यहाँ घाट होता, तो कितना आराम होता।' पर अगर घाट बना हुआ हो, तो क्या कभी आप उस सत्पुरुष के बारे में भी सोचते हैं, जिसने घाट बनाया? नहीं सोचते, पर इससे घाट बनानेवाले का महत्त्व तो कम नहीं हो जाता। इसलिए कल्पना कीजिए कि जैन-परम्परा में और आगे चलकर पुराणों में खासकर 'भागवत महापुराण' में अगर भगवान् ऋषभदेव की स्मृति सुरक्षित न होती, तो हम भारतवासी आज कितने वंचित होते? कभी जान ही नहीं पाते कि देश के ज्ञान इतिहास के शुरुआती दौर में, अर्थात् मनु की पाँचवीं पीढ़ी के आसपास ही एक ऐसा राजा इस देश में हो गया, जिसने राजपाट तो पूरी कुशलता और अक्लमंदी से चलाया ही, देश में कई तरह से कर्मण्यता और ज्ञान का प्रसार किया ही, वह खुद भी ऐसा महादार्शनिक था कि जिसने साबित किया कि 00 64 प्राकृतविद्या- अक्तूबर-दिसम्बर '2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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