SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरु (वृषभ) देव-गीत (यमन राग) -पं० आशाधर सूरि-विरचित जय मंगलं नित्यशुभमंगलम्, जयविमलगुणनिलय पुरुदेव ! ते ।। जय मंगल।।।।। जिनवृषभ वन्दारुवृन्दवन्दितचरण ! मन्दारकुन्दसितकीर्तिधर ! ते । इन्दुकरघृणिकोटिजितविशदतनुकिरण ! मन्दरगिरीन्द्रनिभवरधीर ! ते।। जय मंगलं ।। 2 ।। घोरतरसंसारवाराशिगततीर ! नीराजनाकाररागहर! ते। मारवीरेशकरकोदण्डभंगकर-सार ! शिवसाम्राज्य-सुखसार ! ते।। जय मंगलं।। 3 ।। सुकिसलयततिविततकंकेलितरुनिकट-सुखविनुतसुरकुसुमवर्षयुत ! ते। अकलंकजनहृदयतिमिरौधनुदनिनद ! सकलशशिसितचमरनिकरधुत ! ते।। जय मंगलं।। 4।। चण्डकेसरि-विधृत-पुण्डरीकासनक-मण्डित-सुभामण्डलभात ! ते। खंडिताशनिघोषदिविजदुन्दुभिनाद ! पुण्डरीकत्रितयजितचण्ड ! ते।। जय मंगल।।5।। निरुपम-निरातंक-नि:शेष-निर्माय, निरशन-नि:शोष-निर्मोह ! ते। परमसुख-परदेव-परमेश-परवीर्य, निरघ-निर्मलरूप-वृषभेश ! ते ।। जय मंगलं ।। 6 ।। अर्थ :- हे विमल-गुणों के निवासस्थान भगवन् पुरुदेव ! आपकी जय हो। आप जय और मंगलस्वरूप हैं, नित्य-शुभ मंगलात्मा हैं। - अर्थ :- हे जिनश्रेष्ठ ! वन्दना करनेवाले देव-मनुजवृन्द से सुपूजितचरण ! मन्दार और कुन्द-पुष्पावली के सदृश निरवद्य शुभ्र-कीर्ति के धारक ! अपने शरीर की कान्ति से कोटि-कोटि चन्द्रकिरणों को निर्जित करनेवाले ! गिरिराज मन्दराचल के तुल्य धैर्यशालिन् ! आप जय-मंगल हैं, नित्य शुभ-मंगलात्मा हैं। 004 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy