SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाने लगा। देवताओं के नाम पर बलि दी जाने लगी, पितरों और अतिथियों के लिए पशु काटे जाने लगे। यज्ञों के हवन-कुण्ड और देवताओं की वेदियाँ पशुओं की करुण-चीत्कारों और रक्त से सन गये। यज्ञों के विषाक्त-धुयें से मनुष्यों के कण्ठ रुद्ध होने लगे। यज्ञों में और देवताओं के आगे नर-बलि तक दी जाने लगी। इस काल में महावीर का उदय हुआ। उन्होंने घोषणा की 'धर्म अहिंसा है, हिंसा धर्म नहीं है। यदि हिंसा धर्म हो तो फिर पाप क्या है?' भगवान महावीर का ही यह लोकोत्तरप्रभाव था कि उनके उपदेशों ने लोकमानस में जबर्दस्त परिस्पन्द पैदा किया। लोग धर्म के नाम पर होनेवाली हिंसा से घृणा करने लगे, यज्ञों में बलिप्रथा समाप्त हो गई। पुरानी मान्यतायें टूट-टूट कर गिरने लगीं, नये मूल्य उभरने लगे और तब लोग अहिंसा की भाषा में सोचने लगे और बोलने लगे। महावीर की अहिंसा का दूरगामी प्रभाव यह पड़ा कि भारत में बाद में सारे धर्मों का विकास अहिंसा के आधार पर ही हुआ। यहाँ उस समय अहिंसा की जो प्रतिष्ठा हुई, उसी के संस्कार भारतीयों में अब तक भी विद्यमान हैं। किसी युग में किसी एक व्यक्ति ने सारी लोक-मान्यताओं को बदल दिया हो, इतिहास में महावीर के अतिरिक्त ऐसा अन्य-उदाहरण नहीं मिलता। राजन्य वर्ग पर महावीर का प्रभाव ___ भगवान् महावीर लोकोत्तर-महापुरुष थे। उनके व्यक्तित्व और देशना का प्रभाव निर्धन से लेकर राजाओं तक समानरूप से पड़ा था और वे सपरिवार उनके धर्म में दीक्षित हो गये थे। उनके धर्म में दीक्षित होनेवाले राजाओं में वैशाली के गणप्रमुख चेटक, कुण्डग्राम के गणप्रमुख सिद्धार्थ, राजगृह-नरेश श्रेणिक बिम्बसार, सिंधु-सौवीर-नरेश उदायन, वत्स नरेश शतानीक, दशार्ण नरेश दशरथ, हेमांगद (वर्तमान कर्नाटक) के नरेश जीवन्धर कुमार, पोलाशपुर-नरेश विजयसेन, चम्पानरेश कुणिक अजातशत्रु, काशीनरेश जितशत्रु, कलिंग नरेश जितशत्रु, शूरसेन-नरेश उंदितोदय, काम्पिल्य-नरेश जय, पारस्य-देश (ईरान) का राजकुमार आर्द्रक आदि भगवान् के अनुयायी भक्त थे। इससे भगवान् के व्यापक प्रभाव का पता चलता है। महावीर का परिनिर्वाण ... भगवान् महावीर 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के प्रात:काल मज्झिमा पावा' में (वर्तमान पावापुरी में) कर्मों का नाश करके मुक्त हो गये। देवों और मनुष्यों ने तब दीप प्रज्वलित किये। उसी अमावस्या की संध्या को उनके मुख्य-गणधर इन्द्रभूमि गौतम को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। रात्रि में देवों ने रत्न-दीपक संजोये, मनुष्यों ने कहा"भाव-प्रकाश चला गया। अब हम उनकी स्मृति में द्रव्य-प्रकाश करेंगे।" तब उन्होंने दीपकों से दीपमालिका सजाई। कृतज्ञ-जनता भगवान् के निर्वाण की स्मृति सुरक्षित रखने के लिए प्रतिवर्ष इस दिन 'दीपावली' मनाने लगी। इसप्रकार 'दीपावली पर्व' का प्रचलन हुआ। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 1037
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy