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खण्डहरों का वैभव
-डॉ० रमेशचन्द जैन श्री दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र सीरोन (ललितपुर, उ०प्र०) नवोदित-तीर्थ है। करीब दो माह पूर्व वहाँ से कुछ विशिष्ट कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण इसप्रकार है
नेमिनाथ मूर्ति :- पद्मासन नेमिनाथ प्रतिमा का कटि से नीचे का अलंकृत-भाग प्राप्त हुआ है। आसन पर बेलबूटे बने हुए हैं। इन बेलबूटों के नीचे शंख की आकृति उत्कीर्ण है। इससे द्योतित होता है कि मूल-प्रतिमा नेमिनाथ भगवान् की रही है। शंख-चिह्न के साथ तिहरी कटिनी बनी हुई है। नीचे दो सिंह बने हुए हैं, जो सजीव से लगते हैं। दोनों सिंहों के मध्य में चक्र बना हुआ है। सिंहों के दोनों ओर दो स्तम्भ बने हए हैं, जो तीन भागों में विभाजित हैं। स्तम्भों के नीचे और ऊपर कलाकृति है। स्तम्भों के ऊपर चौकी बनी हुई है। दोनों स्तम्भों के ठीक ऊपर कलाकृति है। स्तम्भों के ऊपर चौकी बनी हुई है। दोनों स्तम्भों के ठीक ऊपर चौकी के पायों पर कमल उत्कीर्ण हैं। सिंहों के नीचे की वेदी के किनारे कमल की पंखुड़ी बनाई गई है। मूर्ति के बाईं ओर चँवर लिये यक्षिणी बनी हुई है। यक्षिणी का चँवर लिये ये एक हाथ ऊपर की ओर उठा हुआ है, दूसरा हाथ कटि से नीचे रखे हुए है। यक्षिणी के समीप कुबेर की आकृति का एक पुरुष बैठा हुआ है, जिसके कान वक्षःस्थल, हाथ, पैर, जंघायें आभूषणों से अलंकृत हैं। दायीं ओर धनुष धारण किये हुये है। बायें हाथ में नारियलनुमा कोई वस्तु लिये हुए है। कुबेर-मूर्ति के केश विशेष-अलंकृत हैं। कुबेर के बायीं ओर स्तम्भ बना हुआ है। कुबेर के ऊपर प्रस्तर पर हाथी बना हुआ है, हाथी भी अलंकृत है। हाथी के पीछे एक महिला हाथ जोड़े बैठी है। मूर्ति के दायीं ओर अम्बिकादेवी की मूर्ति है। अम्बिका अपनी गोद में बच्चा लिये हुए है। अम्बिका के बायीं ओर एक स्त्री और पुरुष बने हुए हैं। यक्षिणी के ऊपर प्रस्तर पर अलंकृत-हाथी बना हुआ है। हाथी के पीछे एक पुरुष प्रणाम करने की मुद्रा में बैठा हुआ है। शान्ति, कुन्थ और अरनाथ की मूर्ति
एक अन्य प्रस्तरखण्ड प्राप्त हुआ है। इसमें एक तीर्थंकर मूर्ति 'पद्मासन' में स्थित है। पद्मासन-प्रतिमा के दोनों ओर कायोत्सर्ग-मुद्रा में दो तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । ये तीनों मूर्तियाँ शान्ति, कन्थ और अरनाथ की प्रतीत होती हैं। दायीं ओर की तीर्थंकर मूर्ति के दायीं ओर यक्ष, यक्षिणी हैं। यक्ष, यक्षिणी के ऊपर मालाधारी विद्याधर हैं। तीर्थंकर मूर्ति के ऊपर उड़ते हुए विद्याधर, विद्याधरी हैं। विद्याधरी की मूर्ति खण्डित है, विद्याधर पूरी तरह सुरक्षित है। बायाँ हाथ कुछ खण्डित है, हाथ में बाजूबन्ध पहिने हुये है। गले में हार है। कानों में कुण्डल पहिने हुए है। केशों का अपना वैशिष्ट्य है। दायें हाथ में विद्याधर कमल की कली तथा बायें हाथ में दण्ड धारण किये हुये है। यक्षिणी के कमर पर आभूषण है।
प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर '2001
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