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________________ वोटिंग-अधिकार मिला है, जो एक तरह से वीटो अधिकार के समकक्ष है, इसके बावजूद चार साल बाद जब यूनीकोड का चौथा-संस्करण जारी किया जाएगा, तो भारत उसमें अपनी भाषाओं की जरूरतों के माफिक परिवर्तन नहीं करा पाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यूनीकोड एकतरह से बहुराष्ट्रीय सॉफ्टवेयर कंपनियों की व्यापारिक-दादागीरी है और भारत को इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। हमने जब अपने मानक तय किये हैं, तो हमें उन पर ही कायम रहना चाहिए, न कि यूनीकोड के चक्कर में अपने हितों को छोड़ना चाहिए। लेकिन सरकार से कहीं ज्यादा भारत का सॉफ्टवेयर-उद्योग इस मामले में सुविधा की स्थिति में है। भारतीय-मानकों को इस्की' (इंडियन स्क्रिप्ट स्टैंडर्ड फॉर स्टैंडर्ड कोड इन्फॉर्मेशन इंटरचेंज) के नाम से जाना जाता है। इसकी अच्छाई यह बताई जाती है कि यह भारत की चौदह-भाषाओं के कंप्यूटर-आधारित-लिप्यंतरण (ट्रांसलिटरेशन) का काम बहुत आसानी से कर सकता है। इसके अलावा विभिन्न भारतीय भाषाओं को एक ही टेक्स्ट में साथ-साथ लिखना हो, जैसे बंगला के साथ गुजराती या हिन्दी के साथ कन्नड़, तो वह काम आसानी से किया जा सकता है। 'यूनीकोड' से यह संभव नहीं। -(राष्ट्रिय हिन्दी दैनिक से साभार उद्धृत) एक ही गुण सम्पूर्ण दोषों को दूर कर देता है. 'व्यालाश्रयापि विफलापि संकटकापि, वक्रापि पंकिलभवापि दुरासदावि । एकेन बंधुरसकेतकी सर्वजन्तु, एको गुण: खलु निहंति समस्तदोष ।।' अर्थ :- केतकी-पुष्प का वृक्ष सर्प से लिपटा होता है, फलरहित होता है, कांटे सहित होता है, वक्र होत है, कीचड़ में पैदा होता है, दुरासद होता है; तथापि सभी को बन्धु जैसे प्रिय होता है, क्योंकि उसका एक सुगंधमय गुण ही उसके सम्पूर्ण दोषों को नष्ट कर देता है। ** एक बार एक विदेशी पर्यटक भारत आया। कर्नाटक राज्य के बेलगाम नामक ग्राम में उसने देखा कि किसी ने घास चलते हुए गधे के पाँव में रस्सी बाँध रखी है।। विदेशी पर्यटक यह देखकर आश्चर्यचकित एवं दु:खी हो गया कि भारत जैसे अहिंसाप्रधान संस्कृतिवाले देश में ऐसा कैसे है। उसने आगे बढ़कर गधे के पैर खोल दिये। 00 94 प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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