________________
भ० त्रिभुवनकीर्ति भ० चन्द्रकीर्ति ब्रह्मचारी शांतिदास: तत्पुत्र पं० भागीरथ पं० सभाचंद बडकुर नन्दलाला भ्राता लाला भगवंतराय बडकुर गोरेदास श्यामदास सिंघई लालमनि व बंसीदास, भैय्या टोडरमल पटेल, हंसराज, भैय्या.... दास बनिए दास..... बंगुला बनाई हंसराज व श्यामदास।" .
धीरे-धीरे वह चैत्यालय बढ़ता-बढ़ता आज इतने विशाल परिसर वाला बड़ा भारी जिनमंदिर बन गया है, जो विदिशा की शान है और इसकी प्रसिद्धि किले के भीतर के बड़े मंदिर' के नाम से जानी जाती है और विदिशा के 20-25 जिन मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ है और ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक प्रतिष्ठित है। ___ उपर्युक्त आलेखों तथा मूर्तियों में उल्लिखित नामावली से यह सुस्पष्ट होता है कि यहाँ 'बलात्कार गण' की 'जेरहट' शाखा के भट्टारकों का वर्चस्व रहा है तथा उनके ब्रह्मचारी शांतिदास जी प्रतिष्ठित धार्मिक पुरुष थे, जिनके पुत्र भागीरथ और समीचंद इस मंदिर के मूल-अधिष्ठाता रहे और बाद में धीरे-धीरे उन्हीं के प्रयास से यह मन्दिर आगे बढ़ता रहा। यहाँ एक महत्त्वपूर्ण कृति मुनि महाकीर्ति की विद्यमान है, जिन्होंने सल्लेखना-धारण कर समाधिमरण लिया होगा; इसीलिये इस मूर्ति का निर्माण किया गया होगा। इस मूर्ति पर तीन पंक्तियों का आलेख उत्कीर्णित है। इस मूर्ति की चर्चा अन्यत्र की गई है, सुधी पाठक 'अनेकान्त दर्पण' का वार्षिक अंक देखें। ___अंत: इस मंदिर की कुछ मूर्तियों के मूर्ति लेख यथावत् प्रस्तुत किये जा रहे हैं। यहाँ उदयगिरि के पास बेतवा और धसान नदी का संगम-स्थल भी अतिप्रसिद्ध है।
इस लेख की तैयारी में श्री गुलाबचंद जी राजकमल स्टोर्स, श्री लक्ष्मीचंद जी रसिक' तथा श्री बाबूलाल जी पूर्व-रजिस्ट्रार का सहयोग प्राप्त हुआ, अत: तीनों महानुभावों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
धर्मही पार उतारेगा एक प्यासा हाथी तालाब में गया और कीचड़ में फंस गया। उसे निकालने छोटे-छोटे अनेक पशु आए, लेकिन निकाल नहीं पाये। आचार्य ने कहा “इसे निकालने के लिए तो दूसरा हाथी ही लाना पड़ेगा, वही इसे बाहर निकाल सकता है।” ठीक इसीप्रकार मनुष्य स्वयं ही संसार सागर (कीचड़) में फंस रहा है, केवल धर्म ही उसे पार उतार सकता है। तीर्थंकर राम, कृष्ण आदि जितने भी महापुरुष हुए हैं, सब धर्म के कारण ही महान् बने हैं। हमें धर्म की छत्र-छाया ही पार उतारेगी, अत: धर्म की ही शरण लो। --(आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के प्रवचन का अंश)
**
00 92 .
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001