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जैनधर्म का तत्व-चिन्तन और ग्रीक-दार्शनिक 'प्रो. हाजिमे नाकामुरा' की दृष्टि में
-प्रो० प्रेमसुमन जैन
परमाणुवाद
दर्शन के क्षेत्र में प्राय: यह माना जाता है कि 'परमाणुवाद' भारत और ग्रीस में प्राय: एक ही समय प्रचलित हुआ। ग्रीस में डेमोक्रेट्स' (Democrates) को (420 ई०पू०) पहला ग्रीक-दार्शनिक माना जाता है, जो परमाणुवाद पर विस्तार से चिन्तन करता है। उसमें परमाणु के स्वरूप उसके विकास आदि की पद्धति पर प्रकाश डाला है। किन्तु इसके पूर्व जैनदर्शन में परमाणुवाद पर व्यापक-विश्लेषण हो चुका था, जिसका प्रभाव ग्रीक-दर्शन के परमाणुवाद पर पड़ा है। डॉ० हाजिमे नाकामुरा (Hajime Nakamura) यह स्वीकार करते हैं कि भारत में अणु और परमाणु के सिद्धान्त का विश्लेषण सर्वप्रथम जैनआगमों में प्राप्त होता है।
ग्रीक-दार्शनिक एनेक्सेगोरस (Anaxogoras) ने सर्वप्रथम आत्मतत्त्व (Spirit) और अजीवतत्व (Matter) के बीच स्पष्ट भेद-रेखा अंकित की थी; किन्तु इसके पूर्व जैनदर्शन में जीव और अजीव के स्वरूप पर चिन्तन किया जा चुका था। जैन-दार्शनिक सम्पूर्ण लोक को प्रमुखरूप से दो भागों में विभक्त करते हैं एक जीव और दूसरा अजीव या चेतन और अचेतन । उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि संसार में इन दो तत्त्वों को स्पष्ट रूप से जाना और अनुभव किया जा सकता है। जैनदर्शन में अजीवतत्त्व को फिर धर्म, अधर्म, आकाश और काल में विभाजित किया गया है। अजीव को 'पुद्गल' कहा गया है। ये सभी द्रव्य हैं। इनका आत्मतत्त्व से यही स्पष्टभेद है कि इनमें चेतनता और जीवन नहीं पाया जाता। ___इन अजीवतत्त्वों में काल' के संबंध में दार्शनिक मानते हैं कि वह परिणमनशील है
और उसका अस्तित्व है। इस विषय में ग्रीक-दार्शनिक ऐरिस्टोटल (Aristotll) की यह स्पष्ट मान्यता है कि काल का अस्तित्व है, उसमें गति है और वह ऐसा तत्त्व है, जिसका वर्णन किया जा सकता है। यह विचारधारा जैनदर्शन की मान्यता से मेल खाती है। यद्यपि जैनदर्शन में इसमें मतभेद है कि काल को द्रव्य स्वीकार किया जाये या नहीं। विद्वानों ने इस विषय पर विशेष-चिन्तन किया है।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001