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________________ ह्रास होता है, तो सारे जनसमुदाय में विपत्ति छा जाती है। व्यास जी ने तो यहाँ तक कहा है कि जो किसान नहीं है, या किसानी का धन्धा नहीं जानता, उसे उस राष्ट्र की समिति का सदस्य नहीं होना चाहिए__ "न न: स समितिं गच्छेद्यश्च नो निर्वपत् कृषिम् ।" - (उद्योगपर्व 26/31) जो किसान का धन्धा नहीं जानते, वे उसका सच्चा हित-अनहित भी नहीं पहचान सकते। अतएव भारतीय-संस्कृति में कृषि-महिमा और गो-महिमा दोनों पर्यायवाची हैं। कषि से गो-रक्षा और गो-रक्षा से कृषि का संवर्धन स्वयंसिद्ध है। ___गौ सबप्रकार की अर्थ-सिद्धियों का द्वार है, इस तत्त्व को भारतीय-संस्कृति में 'गौ' के अनेक प्रतीकों से पल्लवित किया गया है। उदाहरण के लिये गौ' शब्द के कई अर्थ हैं । भूमि गौ है, विद्या और वाणी गौ हैं, शरीर में इन्द्रियाँ गौ हैं और विराट-विश्व में सूर्य और चन्द्र की रश्मियाँ गौ हैं। विश्व-रचना में प्रजापति की जो आद्या-शक्ति है, वह गौ है। इसप्रकार गौ के प्रतीक द्वारा जीवन की बहुमुखी-सम्पन्नता को प्रकट किया गया। जंगल में मेघों के जल से जो तृण उत्पन्न होते हैं, वे जल का ही रूप हैं। उस नीररूपी घास को खाकर गौ सायंकाल जब घर लौटती है, तो उसके थन दूध से भर जाते हैं। नीर का क्षीर में परिवर्तन, यही गौ की दिव्य-महिमा है। पर ऐसा तभी होता है, जब गर्भ-धारण करके वह बच्चे को जन्म देती है। उसके हृदय में जो माता का स्नेह उमड़ता है, वही जल में घुलकर उसे दूध बना देता है। सचमुच माता के हृदय की यह रासायनिक-शक्ति प्रकृति का अन्तरंग-रहस्य है। मानव की माता में अथवा संसार की सब माताओं के हृदय के यही स्नेह-तत्त्व भरा होता है। दोनों में ही उत्पादन या नये-नये प्रजनन की अपरिमित-क्षमता पायी जाती है। गौ की वंश-वृद्धि अत्यन्त विपुल होती है। ___भूमि में एक बीज के विआसने से जो पूँजा निकलता है, उससे सैकड़ों दाने उत्पन्न होते हैं। ऐसे ही वाणी-रूपी गौ से प्राप्त होनेवाला ज्ञानरूपी दूध भी अनन्तफल देता है। एक सच्चे तपस्वी आचार्य या गुरु की वाणी से जो ज्ञान फैलता है, उससे होनेवाले लोक-कल्याण का अन्त नहीं है। ज्ञान का यह सूत्र देश और काल में अनन्त है। प्रत्येक पीढ़ी अपने पूर्वजों से इस निधि को प्राप्त करती हुई स्वयं भी इसे बढ़ाने का उद्योग करती है। वाणी-रूपी गौ का ज्ञानरूपी दुग्ध जब मनुष्य का मनरूपी बछड़ा पीता है, तो उसमें नये प्राण का संचार हो जाता है। अच्छे नेता की वाणी-रूपी कामधेनु के दुग्ध से राष्ट्र का जीवन अमर बनता हुआ देखा जाता है। इस गौ के प्रभाव की कोई सीमा नहीं है। यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि “संसार में प्रत्येक वस्तु की सीमा है, पर क्या ऐसी भी कोई वस्तु है, जिसके प्रभाव की माप नहीं है?" युधिष्ठिर ने यही उत्तर दिया--"गोस्तु मात्रा न विद्यते", अर्थात् सबकी मात्रा है, सीमा है; पर गौ की नहीं। एक आम के बीज से जो वृक्ष होता है, उसमें सैकड़ों मन आम लगते हैं और यदि उन सब गुठलियों को बोया जाये, तो सारी भूमि ही 40 40 प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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