________________
आत्मजयी महावीर
—आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
भगवान् महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक-वर्ष के सुअवसर पर जहाँ सब ओर से विद्वान् महावीर के जीवनचरित्र को लिखने में प्रवृत्त हैं और अनेकानेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं; वहीं वीतरागी भगवान् महावीर के जीवन-दर्शन को प्ररूपित करनेवाला एक निष्पक्ष प्रामाणिक विद्वान् की सारस्वत-लेखनी से प्रसूत यह आलेख निश्चय ही जिज्ञासुपाठकवृन्द को आकर्षक का केन्द्र प्रतीत होगा।
लेखन के क्षेत्र में सुपरिचित हस्ताक्षर आचार्य हजारी प्रसाद जी द्विवेदी के निबन्ध हिन्दी-साहित्य-जगत् में अतिविशिष्ट स्थान रखते हैं। इनकी विशेष बात यह होती है कि गम्भीर-विषय को भी वे रोचक भाषा-शैली में उच्चमर्यादाओं के साथ वे प्रस्तुत करते हैं। भगवान् महावीर के इस आलेख में भी उनकी विशिष्ट शैली का व्यापक प्रभाव प्रतिबिम्बित
–सम्पादक
जीवन-प्रेरणा के स्रोत __ जिन पुनीत-महात्माओं पर भारतवर्ष उचित गर्व कर सकता है, जिनके महान् उपदेश हजारों वर्ष का कालावधि को चीरकर आज भी जीवन्त-प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, उनमें भगवान् महावीर अग्रगण्य हैं। उनके पुण्य-स्मरण से हम निश्चितरूप से गौरवान्वित होते हैं। आज से ढाई हजार वर्ष पहिले भी इस देश में विभिन्न-श्रेणी का मानव-मण्डलियाँ बसती थीं। उनमें कितनी ही विकसित-सभ्यता से सम्पन्न थीं। बहुत सी अर्द्ध-विकसित और अविकसित-सभ्यतायें साथ-साथ जी रहीं थीं। आज भी उस अवस्था में बहुत अन्तर नहीं आया है, पर महावीर के काल में विश्वासों और आचारों की विसंगतियाँ बहुत जटिल थीं
और उनमें आदिम-प्रवृतियाँ बहुत अधिक थीं। इस परिस्थिति में सबको उत्तम-लक्ष्य की ओर प्रेरित करने का काम बहुत कठिन है। किसी के आचार और विश्वास की तर्क से गलत साबित कर देना, किसी उत्तम-लक्ष्य तक जाने का साधन नहीं हो सकता; क्योंकि उससे अनावश्यक-कटुता और क्षोभ पैदा होता है। __हर प्रकार के आचार-विचार का समर्थन करना और भी बुरा होता है, उससे गलत बातों का अनुचित समर्थन होता है और अन्ततोगत्वा आस्था और अनास्था का वातावरण
0036
प्राकतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001