________________
समाधिविधि से देहत्याग करने की चर्चा अनेकत्र प्राप्त होती है। किन्तु इस प्रसंग में प्राय: कुछ लोग यह कह जाते हैं कि चन्द्रगुप्त और भद्रबाहु के प्रवास से पूर्व दक्षिणभारत में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार नहीं था। यह बात ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं व्यावहारिक-परम्परा से मेल नहीं खाती है। इस विषय में कतिपय विचार-बिन्दु निम्नानुसार हैं
अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु अपने शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य (विशाखाचार्य) एवं अन्य विशाल मुनिसंघ के साथ ईसापूर्व 298 में दक्षिण भारत पहुंचे थे। ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी के दिग्विजयी सम्राट् खारवेल के हाथीगुम्फा-अभिलेख के अनुसार भी दक्षिणभारत एवं कलिंग में जैनधर्म के प्रचार की सूचना मिलती है। महाराष्ट्र के बारे में एक प्रमाण यह मिलता है कि भगवान् महावीर के पूर्ववर्ती कलिंग-राजा करकंडु, जो कि पार्श्वनाथ के शिष्य थे, ने तेरपुर (धाराशिव) की गुफा का दर्शनकर वहाँ जैनमंदिरों का निर्माण कराया था। महावंश' के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ईसापूर्व पन्द्रहवीं शताब्दी में जैनधर्म सिंहल (लंका) में प्रचारित हो चुका था। इस तथ्य के आधार पर श्री रामस्वामी आयंगार ने जिज्ञासा व्यक्त की है कि दक्षिणभारत को स्पर्श किये बिना क्या जैनधर्म का सीधे सिंहल पहुँच सकना संभव था।?10 स्वत: स्पष्ट है कि महाराष्ट्र, आंध्र, कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु प्रदेशों में प्रभावना करता हुआ ही जैनधर्म सिंहल में प्रचारित-प्रसारित हुआ होगा। ___ जैन-ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि आदितीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र बाहुबलि दक्षिणभारत के प्रथम राजा बने थे। तथा तभी से दक्षिणभारत में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार था। स्वयं बाहुबलि को भी गोदावरी नदी' के तट पर स्थित पोदनपुर' में उग्र-तपस्या के बाद कैवल्य की प्राप्ति होना जैनग्रंथों में वर्णित है। इससे प्रागैतिहासिक-काल से ही जैनधर्म का दक्षिण-भारत में प्रचार-प्रसार होना ज्ञापित होता है।
हरिवंशपुराण' के अनुसार पांडवों ने दक्षिणभारत में वनवास के समय दक्षिण की 'मथुरा' नगरी (मदुरै) की स्थापना की थी। और इस समय तक द्वारिका नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी थी।" इसीकारण नारायण श्रीकृष्ण एवं बलदेव ने दक्षिण की ओर प्रयाण किया। मार्ग में कौशाम्बी के वन में जरत्कुमार के निमित्त से नारायण श्रीकृष्ण दिवंगत हुए। यह जानकर पांडव बलराम के पास पहुंचे और उन्होंने नारायण श्रीकृष्ण के शव को शृंगिपर्वत पर अग्नि-संस्कार किया। फिर बलराम ने उसी शृंगिपर्वत पर तपस्या की। फिर पांडवों को पता चला कि पल्लवदेश' में भगवान् अरिष्टनेमि विहार कर रहे हैं, तो वे उनके दर्शनार्थ वहाँ गये।12 ____ वैदिक-पुराणग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि नर्मदा के निकटवर्ती क्षेत्र में विष्णु जी ने दिगम्बर जैन-मुनि के रूप में अहिंसा और सौहार्द की भावना का प्रसार किया था। ___ दक्षिणभारत के सम्राट् नेवुपादनेजार के ताम्रशासनलेख से ज्ञात होता है कि वह भी जैनधर्मानुयायी था और ईसापूर्व 1140 में उसने द्वारिका के निकट रैवतक पर्वत' पर
प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001
00 25