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अनुपम ऐतिहासिक सम्राट् बना। वैदिक-ग्रंथों में उसकी प्रशस्ति में यशोगीतियाँ निम्नानुसार प्राप्त होती हैं
'नव नन्दान् द्विज: कश्चित् प्रपन्नानुद्धरिष्यति। तेषामभावे जगतीं मौर्या भोक्षयन्ति वै कलौ।। स एव चन्द्रगुप्त वै द्विजो राज्येऽभिषेक्ष्यति ।
तत्सुतो वारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धन: ।।2 अर्थ :- अभिमानी नव नन्दों का कोई ब्राह्मण उद्धार करेगा (अर्थात् उनके मान को विगलित करेगा), उनके न रहने पर इस भारतभूमि का भोग मौर्यवंशी-सम्राट् करेंगे। उनमें सम्राट् चन्द्रगुप्त को वह ब्राह्मण (चाणक्य) अभिषिक्त करेगा। उसका (चन्द्रगुप्त का) पुत्र वारिसार (बिंदुसार) होगा और उसका (बिंदुसार का) पुत्र अशोकवर्धन (सम्राट अशोक) होगा। इसी बात की पुष्टि इस पद्य में भी प्राप्त होती है
“अनुगंगा प्रयागं च साकेतं महाधांस्तथा। ___एतान् जनपदान् सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजा: ।।" अर्थ :- गंगा के किनारे से लेकर प्रयाग, साकेत, मगध आदि इन सभी जनपदों का गुप्त (सम्राट चन्द्रगुप्त) के वंशज उपभोग करेंगे।
ये सभी जैन-संस्कारों से अनुप्राणित थे। सम्राट अशोक को कई लोग मांसाहारी कहने का साहस करते हैं, किंतु वे यह नहीं जानते कि व्यक्तिगतरूप से तो अशोक प्याज तक नहीं खाता था। 'दिव्यावदान' नामक ग्रंथ में लिखा है
“देवि ! अहं क्षत्रिय:, कथं पलाण्ड् परिभक्षयामि?" अर्थ :- हे देवी ! मैं क्षत्रिय हूँ, मैं प्याज का भक्षण कैसे कर सकता हूँ?
ध्यातव्य है कि जैन-परम्परा में लहसुन-प्याज आदि पदार्थों का जमीकंद होने से त्याग विहित है।
जैन परम्परा में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त जैनधर्मायुयायी था, तथा न केवल वह जैनसम्राट् था, अपितु उसे निर्ग्रन्थ-जैन-मुनि की दीक्षा भी अंगीकार की थी और मुकुटधारी राजाओं में वह अन्तिम-सम्राट् था, जिसने निर्ग्रन्थ-जैनदीक्षा अंगीकार की थी
'मउडधरेसुं चरिमो, जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य।
तत्तो मउडधरा दु पव्वज्जं व गेण्हंति ।। अर्थ :- मुकुटधारी राजाओं में अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त ने जिनेन्द्र-दीक्षा (जैनदीक्षा) धारण की। इसके पश्चात् मुकुटधारी प्रव्रज्या को ग्रहण नहीं करेंगे।
सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान् डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन ने अपनी कृति 'प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें' में विस्तार से वर्णन किया है।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001