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दक्षिण भारत में सम्राट् चन्द्रगुप्त से पूर्व भी जैनधर्म का प्रचार-प्रसार था
___-डॉ० सुदीप जैन सुसंगठित भारतवर्ष की नींव-स्थापना करनेवाले ऐतिहासिक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम सर्वोपरि है। उन्होंने भारतवर्ष को विदेशी आक्रान्ताओं से सुरक्षित ही नहीं किया था, अपितु अपने बल एवं पौरुष से उन्हें भारत को विजित करने की कल्पना करने तक से वंचित कर दिया था। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक-उन्नति के शीर्ष पर भारत को प्रतिष्ठित करनेवाले इस महानतम सम्राट को जैनसम्राट' के रूप में बहुत कम लोग जानते हैं। जिन किन्हीं आधुनिक इतिहासविदों को इसका ज्ञान भी था, उन्होंने जाति-व्यामोह के पूर्वाग्रह में इस तथ्य को या तो उद्घाटित ही नहीं किया; और यदि किया भी, तो सम्राट चन्द्रगुप्त को 'मुरा' नाम की दासी से उत्पन्न या 'नामितपुत्र' जैसे निकृष्ट कल्पनाओं से कलुषित करने का प्रयत्न किया। ___ तथ्यों की उपेक्षा करने, पूर्वाग्रह के कारण सत्य को न स्वीकारने या उसका उल्लेख न करने, कल्पित बातों से ऐतिहासिक तथ्यों को विकृतरूप में प्रस्तुत करने का प्रयास भारतीय इतिहास के लेखकों ने भरपूर किया है। आधुनिक-काल में बढ़ी इस प्रवृत्ति की प्राचीनकाल में छाया तक दिखाई नहीं देती है। इसीकारण आधुनिक इतिहास की पुस्तकों में जैनपरम्परा के महापुरुषों के व्यक्तित्व, जीवन एवं योगदान के बारे में तथ्यपरक यथार्थ-विवरण अनुपलब्ध है। __ प्रस्तुत-प्रकरण में यहाँ सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का संक्षिप्त परिचय प्रथमत: प्रस्तुत करना चाहता हूँ।
विद्वानों की मान्यता है कि ईसापूर्व छठवीं शताब्दी में मौर्य-लोग 'पिप्पलीवन' में स्वाधीनभाव से बसे हुए थे। बौद्धग्रंथों में मौर्य' वंश को 'क्षत्रिय' कहा गया है
"मोरिया नाम खत्तिया वंशजात । इसी यशस्वी क्षत्रिय मौर्यवंश' में चन्द्रगुप्त नामक शुभलक्षणों वाले यशस्वी बालक का जन्म हुआ, जो कि महामति आर्य चाणक्य का पावन सान्निध्य एवं प्रातिभ संस्पर्श पाकर
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001
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