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________________ अभिमत प्राकृतविद्या, जनवरी - जून 2001 हाथ में है । 'महावीर - चन्दना विशेषांक' बहुआयामी रोचक एवं गवेषणापूर्ण जानकारी के कारण पठनीय- मननीय हो गया है। सभी आलेखों में नवीनता के दर्शन होते हैं। डॉ० ए०एन० उपाध्ये का आलेख 'भगवान् महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थमिदं तवैव' भगवान् महावीर की सर्वोदयी - देशना के सशक्त - प्रतीक हैं । आज के श्रमणाचार एवं श्रावकाचार में आये शिथलाचार एवं संकीर्ण एकांगी - सोच के शमन-दमन हेतु इन आलेखों में पर्याप्त दिशाबोध उपलब्ध है। डॉ० उदयचन्द्र जैन का प्रयास ‘वइसालीए कुमार-वडढमाणो' स्तुत्य है और आचार्यश्री का प्राकृतभाषा के उत्थान की कल्पना साकार करता है। डॉ० सुदीप जैन का सम्पादकीय, वैशाली और राजगृह, तथा अनेकान्त एवं स्याद्वाद आलेख शोध-खोजपरक साधना से प्रसूत है । इतिहासकारों एवं शोध कर्त्ताओं को सहज ही बहुमूल्य सामग्री एक स्थान पर प्रस्तुत करने हेतु डॉ० सुदीप बधाई के पात्र हैं। श्री प्रभात कुमार दास के 'लोकतांत्रिक दृष्टि और महावीर' आलेख में भगवान् महावीर के दर्शन की विद्यमान परिप्रेक्ष्य में उपादेयता एवं सर्वकल्याणता सहज ही सिद्ध की है। स्वच्छ लोकतांत्रिक व्यवस्था का सुफल कर्त्तव्यबोध में ही निहित है, जो अहिंसा के सिद्धान्त का सूत्र है। अन्य आलेख भी सुरुचिपूर्ण भावों से युक्त हैं । अंत में श्री सुरेश जैन (I.A.S.) की सम्मति में व्यक्त उनके भावों को नमन करता हूँ, जिसमें उन्होंने श्रमण एवं श्रमणी श्रावक एवं श्राविकाओं से अपेक्षा की है, कि वे अपने व्यवहार में अहिंसा, विचार में अनेकांत और वाणी में स्याद्वाद के ठोस उदाहरण प्रस्तुत कर पंथवाद से की संकीर्णता से ऊपर उठकर जैनदर्शन को विश्व के समक्ष वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करें ।' आपके कुशल-सम्पादन की श्रमसाध्य - साधना फलीभूत हो, यही भावना है। I — डॉ० राजेन्द्र कुमार बंसल, अमलाई ** प्राकृतविद्या का जनवरी - जून 2001 का 'संयुक्तांक' हस्तगत हुआ । यह अंक तीर्थंकर महावीर के सम्बन्ध में जहाँ पूर्व की जानकारियों में श्रीवृद्धि करती है, वहीं चन्दनबाला जैसे अनुकरणीय व्यक्तित्व पर यथेष्ट प्रकाश डालती है । कम से कम मेरे जैसे व्यक्तियों को इससे पर्याप्त लाभ हुआ है । संस्था के साथ-साथ रचनाकार भी साधुवाद के पात्र हैं । यह अंक संग्रहणीय है और गंभीर अध्ययन-मनन-मंथन के योग्य है । अभी कुछ प्राकृतविद्या�जुलाई-सितम्बर '2001 101
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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