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________________ भारतीय सांस्कृतिक व भाषिक एकता –श्रीमती स्नेहलता ठोलिया सिन्धुघाटी की सभ्यता से पूर्व के भारत की कहानी अत्यन्त धुंधली और अन्धकारपूर्ण है; परन्तु अब मोहनजोदड़ो, हड़प्पा की खुदाइयों में जिस सभ्यता के अवशेष मिले हैं, उनसे प्रमाणित होता है कि ऋग्वेदकाल से सदियों पूर्व सिन्ध के काठे' में मानव-केन्द्रों की सभ्यता व संस्कृति उच्चकोटि की थी।''मोहनजोदड़ो' के खंडहरों से प्राप्त योगीश्वर ऋषभ की कायोत्सर्ग-मुद्रा तथा वैदिक वाङ्मय में वातरशना मुनियों, केशी और व्रात्य-क्षत्रियों के उल्लेख आये हैं, जिनसे यह स्पष्ट है कि पुरुषार्थ पर विश्वास करनेवाले धर्म के प्रगतिशील व्याख्याता तीर्थंकर प्रागैतिहासिक काल में भी विद्यमान थे। निवृत्ति व अवसाद भी भारत की सनातन परम्परा में विद्यमान थे।' असंख्य मुहरों पर उभरी आकृतियों के प्रमाण से विदित होता है कि सैन्धवों में वृषभ' समादत था। अब सभी इतिहासकार मानने लगे हैं कि इस सैन्धव-सभ्यता के निर्माता प्राग्वैदिक द्रविड़ थे। ___ "द्रविड़ों के बाद आर्यजाति ने आते ही अपने पराक्रम, कूटनीति और बुद्धिबल के कारण इनको स्वायत्त कर लिया। आर्यों ने इनको अनार्य, अदेवयु (वैदिक देवताओं के प्रति उदासीन), देवपीयु (उनके विरोधी), अयज्वन (यज्ञ न करनेवाले), अकर्मन् (क्रियानुष्ठानों से रहित), शिश्नदेवा (लिंगपूजक), अन्यव्रत, मघवाक् (अबूझ बोली बोलनेवाली) आदि संज्ञायें दी। पाणिनी जैसे पुरोहितों ने 'श्रमण-ब्राह्मण संघर्ष' का उल्लेख 'शाश्वतिक विरोध' के उदाहरण के रूप में किया। चूँकि आर्य भारत पहुँचने के पूर्व अधिकतर घुमक्कड़ और मनमौजी जीव रहे थे. अत: प्रकृति के सौन्दर्य पर चकित हो प्रवृत्ति व आशावाद के स्वर से सारे समाज को पूर्ण कर दिया। किन्तु वैदिक आशावाद और उत्साह की प्रबलता चिरस्थायी नहीं रह सकी और जो लोग उत्साह की ऋचायें रचते थे, वे स्वयं ही 'अवसाद का गीत' गाने लगे। आगे जब आर्यों का यज्ञवाद 'भोगवाद' का पर्याय बनने लगा और आमिषप्रियता से प्रेरित कुछ लोग जीवहिंसा को धर्म मानने लगे; तो इस देश की संस्कृति यज्ञ और जीवघात —दोनों से विद्रोह कर उठी। तीर्थंकर महावीर व बुद्ध इस संस्कृति के उद्घोषक रहे। यदि आर्यों का यज्ञवाद खुल्लमखुल्ला जीवहिंसा को औचित्य प्रदान नहीं करता तथा यदि 0086 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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