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________________ इस्तेमाल लोग विविध रूपों में करते आ रहे हैं। एक मान्यता के अनुसार सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को यदि मोर-पंख की चिलम भरकर पिला दी जाए, तो रोगी बच जाता है। घरों में मोर पंख रखने से सांप व छिपकली घर में नहीं आते। इसके अतिरिक्त आयुर्वेदिक दवाओं में भी इनका प्रयोग होता है। ___ इसे ड्राईंगरूम में सजावट-हेतु भी इस्तेमाल किया जाता है। विदेशों में मोर पंख का इस्तेमाल सजावटी वस्तुयें बनाने में किया जाता है। अमरीका एवं यूरोपीय देशों के साथ-साथ पूर्वी क्षेत्रों में भी मोर-पंखों की काफी खपत होने लगी है। मोर पंख के निर्यात में राजस्थान सबसे आगे है। अन्य निर्यातक राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि हैं। राजस्थान में मोर-पंखों के धंधे से 'खटीक' जाति के लोग काफी अरसे से जुड़े हैं। जंगलों में प्राय: पशुओं को चराते हुए लड़के-लड़कियाँ व बड़े-बूढे अक्सर गिरे पड़े मोर पंखों को चुनते नजर आते हैं। कुछ लोगों को ये पंख बड़े शहरों की ओर ले जाते हुए भी देखा जा सकता है। यह क्रम सितम्बर से दिसम्बर तक अधिक चलता है। ऐसा शायद इसलिए भी है कि इसी समय मोर अपने पुराने पंखों को गिराता है, जो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। मोर-पंख एकत्रित करने के कई तरीके हैं। एक तो ग्रामीण स्वयं इन्हें चूनकर इकट्ठा करते हैं और बाद में जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, जैसलमेर आदि जगहों पर खटीकों के हाथों बेच देते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि 'फेरी' वाले गाँवों से मोरपंख सामान के बदले ले लेते हैं। खटीक जाति के लोग इन लोगों के माध्यम से इन्हें खरीदने के अतिरिक्त मोर-पंखी मंडी में खरीदते हैं। 5 रुपये से 10 रुपये प्रति हजार पंखी का रेट अमूमन रहता है, जो बोली के लिहाज से घटता एवं बढ़ता है। मोर-पंखी की । कीमत विभिन्न प्रकार के पंखों पर निर्भर करती है। क्वालिटी के अनुसार मोर-पंखों को तीन भागों में बाँटा गया है। पहला चंदा'. जिनमें सभी पंखों पर आँख का निशान होता है। दूसरा समछड़' यानी कटा हुआ, जिसमें पंख तो चंदा जैसे ही होते हैं, पर इनमें रंगीन आँखें नहीं होती। तीसरे को इनकी भाषा में तलवार' कहते हैं, यह मोर की पीठ पर तलवारनुमा होते हैं तथा इनका रंग गहरा धानी व सुनहरा होता है। इन पर आँख नहीं होती। सबसे महंगा इनका चंदा' होता है, जो 70 से 100 रुपये प्रति हजार में बिकता है, जबकि 'समछड़' व 'तलवार' प्राय: 20 और 15 रुपये प्रति हजार मिल जाते हैं। ____ लम्बाई के अनुसार पंखों की छंटनी की जाती है। 20 से 50 ईंच तक लम्बे पंखों को सबसे अच्छा माना जाता है। इनमें कीड़े न लगें, इसके लिए पाउडर छिड़का जाता है। फिर पोलीथीन बैग में सीलकर बोरे में पैक कर लिया जाता है। मोर के पंख लगभग दो मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। पंख की डंडी का एक पृष्ठ चिकना, चमकीला होता 0084 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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