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मंदिर, मस्जिद हो या गिरजाघर दुनिया में सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष है मोर-पंख
पक्षियों का राजा मोर राष्ट्रीय पक्षी होने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द का जीता-जागता उदाहरण है। भारतीय समाज में मोर के पंख का विशेष स्थान है। मोर के पंख को दुनिया में सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष कहा जा सकता है। मोर के पंख मंदिर, मस्जिद तथा गिरजाघरों में बिना किसी भेदभाव के समान रूप से इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
सौन्दर्य के दृष्टिकोण से देखें तो सृष्टि के सभी जीवों में मादा नर से अधिक खूबसूरत होती है। परन्तु मोर में मादा से कहीं अधिक आकर्षक होता है नर, जिसे अपवाद के रूप में देखा जा सकता है। वैसे एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवराज इन्द्र एक यज्ञ के दौरान लंकेश से भयभीत होकर मोर का रूप धारण कर बच निकलने में कामयाब हो गए. तभी से उन्होंने प्रसन्न होकर अपने पंखों की सुंदरता मोर-पंखों को प्रदान कर दी। इसप्रकार नीले, बैंगनी, हरे धानी व हल्के लाल रंगों के समन्वय से 'मयूर' आम लोगों के आकर्षण का केन्द्रबिन्दु बन गया।
मोर सबसे अधिक संख्या में राजस्थान में पाए जाते हैं। इनकी संख्या गुजरात, असम में भी कम नहीं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार भारत ही इनका मूलस्थान रहा है। मोर के सौंदर्य से मुग्ध होकर कई साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मोर के सौन्दर्य-बोध का प्रतीक रूप में वर्णन किया है। मोर के सौन्दर्य में चार चांद लगाते हैं मोर-पंख। मोर की चार फुट लम्बी रंगीन पूंछ में हरे रंग के ढेर सारे पंख पाये जाते हैं।
मोर-पंख का सौंदर्य इसके सिर पर बने रंग-बिरंगे गोलकों के कारण है, जिन्हें चन्द्रक' या 'मेचक' भी कहते हैं। चन्द्रक के मध्य में गहरे नीले रंग का हृदयाकार एक गोलक होता है और उसके चारों ओर चार चक्र होते हैं। पहला चक्र गहरे नीले हरे रंग का, दूसरा अधिक चौड़ा चक्र सुनहरे कांसे के रंग का, तीसरा बहुत छोटा चक्र सुनहरे रंग का और चौथा भूरे रंग का होता है। चन्द्रक का सुनहरा रंग सबसे अधिक ध्यान आकृष्ट करता है।
मोर-पंख जहाँ एक ओर मोर की सुन्दरता का अहम् हिस्सा है, वहीं इन पंखों का
प्राकृतविद्या+ अक्तूबर-दिसम्बर '2000
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