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________________ प्राचीन नाटकों में प्रयुक्त प्राकृतों की सम्पादकीय अवहेलना -प्रभात कुमार दास प्राचीन संस्कृत के नाटककारों ने नाट्य-साहित्य तत्तत्युगीन विभिन्न प्राकृतों के क्षेत्र-कालानुरूप एवं पात्रानुरूप प्रयोग करके प्राकृत के लोकजीवन के रूपों को अमृतत्व प्रदान करने का सार्थक एवं सबल प्रयास किया था; जो कि न केवल नाट्यशास्त्रीय दृष्टि से अपितु भाषाशास्त्रीय दृष्टि से भी अत्यन्त सफल रहा था। किंतु आधुनिक सम्पादकों ने संस्कृत-पाठ्यक्रमों में इनकी संस्कृत-छाया' बनाकर नाट्यशास्त्र एवं भाषाशास्त्र —दोनों दृष्टियों से स्वरूप-विकृत करने का जो कार्य किया है; उसकी सप्रमाण झलक इस आलेख से प्राप्त होती है। –सम्पादक वैदिक वाङमय में चार वेदों की सष्टि नैतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से की गई। इससे व्यक्ति की नैतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की काफी हद तक पूर्ति हुई, किन्तु लोकरंजक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि की पूर्ति के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था। किंवदन्ती है कि तब मनुष्यों और देवताओं ने जाकर ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि “हमारे लिए मनोविनोद का कुछ साधन बताइए", तब ब्रह्मा जी ने 'ऋग्वेद' से कथातत्त्व, 'यजुर्वेद' से अभिनय, सामवेद' से संगीत तथा 'अथर्ववेद' से रसतत्त्वों को लेकर पंचमवेद' नाम से 'नाट्यवेद' की सृष्टि की; जिससे देवताओं और मनुष्यों के मनोविनोद एवं सांस्कृतिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह 'नाट्यवेद' की परम्परा लोकजीवन में बहप्रचलित रही तथा ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी के सम्राट् खारवेल के शिलालेख में इसे ही गंधर्ववेद' के नाम से भी उल्लिखित किया गया है। इस उल्लेख से प्रमाणित होता है कि यह नाट्यवेद पहिले गंधर्ववेद' के नाम से जाना जाता था। लोकजीवन में जनसामान्य से लेकर सम्राट् तक इसकी शिक्षा प्राप्त करते थे। यद्यपि यह नाट्यवेद आज उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसी नाट्यवेद या गंधर्ववेद के आधार पर आचार्य भरतमुनि ने 'नाट्यशास्त्र' की रचना की थी, जो कि आज उपलब्ध है। वर्तमान परम्परा में रचित जितने भी प्राचीन नाट्यविद्या के ग्रन्थ हैं, वे सभी इसी नाट्यशास्त्र में वर्णित परम्परा एवं निर्देशों पर आधारित हैं। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 4065
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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